Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 616
________________ 95555 )) 153. All beings are of ten kinds(1) Prithvikayik (earth-bodied beings), (2) Apkayik (water-bodied beings), (3) Tejaskayik (fire-bodied beings), (4) Vayukayik (air-bodied beings), (5) Vanaspatikayik (plant5 bodied beings), (6) Dvindriya (Two-sensed beings), (7) Trindriya (three卐 sensed beings), (8) Chaturindriya (four-sensed beings), (9) Panchendriya (five-sensed beings) and (10) Anindriya (without sense organs; Siddha). Also all beings are of ten kinds-(1) Pratham samaya naarak4 infernal beings at the first moment of birth. (2) Apratham samaya 卐 naarak-infernal beings at post birth moments. (3) Pratham samaya 4 tiryanch (animals). (4) Apratham samaya tiryanch. (5) Pratham samaya i manushya (human beings). (6) Apratham samaya manushya. (7) Pratham • samaya deva (gods). (8) Apratham samaya deva. (9) Pratham samaya Siddha (liberated beings). (10) Apratham samaya Siddha. 卐)) ב ת ו תב תב ובוב ובוג ו. ו: ו. ו. ו. ו. ו शतायुष्क दशा-पद SHATAYUSHK-PAD (SEGMENT OF HUNDRED YEARS OFAGE) १५४. वाससताउयस्स णं पुरिसस्स दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा बाला किड्डा य मंदा य, बला पण्णा य, हायणी। पवंचा पब्भारा य मुम्मुही सायणी तधा॥१॥ १५४. सौ वर्ष की आयु वाले पुरुष की दस दशाएँ (अवस्था) हैं, जैसे-(१) बालदशा, (२) क्रीडादशा, (३) मन्दादशा, (४) बलादशा, (५) प्रज्ञादशा, (६) हायिनीदशा, (७) प्रपंचादशा, (८) प्रारभारादशा, (९) उन्मुखीदशा, (१०) शायिनीदशा। ___154. There are ten avasthas (states) of a hundred year old man(1) Baal dasha, (2) Krida dasha, (3) Manda dasha, (4) Bala dasha, (5) Prajna dąsha, (6) Hayini dasha, (7) Prapancha dasha, (8) Pragbhara fi dasha, (9) Unmukhi dasha, and (10) Shaayini dasha. विवेचन-मनुष्य की पूर्ण आयु सौ वर्ष मानकर, दस-दस वर्ष की एक-एक दशा का वर्णन प्रस्तुत ॐ सूत्र में किया है-(१) बालदशा-जन्म से दस वर्ष तक की अवस्था। (२) क्रीडादशा-इसमें खेल-कूद की + प्रवृत्ति प्रबल रहती है। (३) मन्दादशा-इसमें भोग-प्रवृत्ति की अधिकता से विशिष्ट बुद्धि के कार्यों की मन्दता रहती है। (४) बलादशा-इसमें मनुष्य अपने बल का प्रदर्शन करने की क्षमता प्राप्त करता है।। 9 (५) प्रज्ञादशा-इसमें मनुष्य की बुद्धि धन कमाने, कुटुम्ब पालने आदि में लगी रहती है। " (६) हायनीदशा-इसमें शक्ति व इन्द्रिय बल क्षीण होने लगता है। (७) प्रपंचादशा-इसमें मुख से : लार-थूक आदि गिरने लगते हैं, कफ बढ़ने लगता है। (८) प्राग्भारदशा-इसमें शरीर झुर्रियों से व्याप्त हो । जाता है। (९) उन्मुखीदशा-इसमें मनुष्य बुढ़ापे से आक्रान्त हो मौत के सन्मुख हो जाता है। 9 (१०) शायिनीदशा-इसमें मनुष्य दुर्बल, दीनस्वर, होकर शय्या पर पड़ा रहता है। (हरिभद्रसूरि कृत दसवें टीका पत्र ८ तथा स्थानांग वृत्ति पत्र ४९३) נ ת ת ת ת ת נ ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת स्थानांगसूत्र (२) (552) Sthaananga Sutra (2) | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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