Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 593
________________ 5 activities. (9) Sankshep-ruchi-acquired through listening to brief 5 卐 फ religious texts. ( 10 ) Dharma-ruchi — acquired through faith in ascetic 5 f religion and conduct. (see Uttaradhyayan Sutra 28/ 16-27) 卐 hhhhhhhhhhhhhhhhhhh F F फ्र F F १०५. संज्ञाएँ दस प्रकार की हैं, जैसे - ( १ ) आहारसंज्ञा, (२) भयसंज्ञा, (३) मैथुनसंज्ञा, फ्र (४) परिग्रहसंज्ञा, (५) क्रोधसंज्ञा, (६) मानसंज्ञा, (७) मायासंज्ञा, (८) लोभसंज्ञा, (९) लोकसंज्ञा 5 (विशेष ज्ञानोपयोग), (१०) ओघसंज्ञा (कुछ लोग इसे छठी इन्द्रिय ज्ञानेन्द्रिय अथवा इ- एस-पी. एक्स्ट्रा फ्र सेन्सरी पसेप्सन भी कहते हैं ।) 卐 卐 105. Sanjna (desires) are of ten kinds-(1) ahar-sanjna (desire for फ्र food), (2) bhaya-sanjna (desire to run away from fear), (3) maithunsanjna (desire for sex), (4) parigraha-sanjna (desire for possessions ), 5 fi ( 5 ) krodh-sanjna (tendency of anger ), ( 6 ) maan-sanjna (tendency of 5 f conceit), (7) maaya-sanjna (tendency of deceit), (8) lobh-sanjna (tendency 5 of greed) (9) Lok-sanjna (general knowledge) and (10) Ogh-sanjna (unusual awareness; some people call it sixth sense or ESP/extra sensory perception). फ्र संज्ञा - पद SANJNA PAD (SEGMENT OF DESIRE ) १०५. दस सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - आहारसण्णा, (भयसण्णा, मेहुणसण्णा), परिग्गहसण्णा, कोहसण्णा, (माणसण्णा, मायासण्णा), लोभसण्णा, लोगसण्णा, ओहसण्णा । गगगगग F १०६. णेरइयाणं दस सण्णाओ एवं चेव । १०७. एवं निरंतरं जाव वेमाणियाणं । १०६. इसी प्रकार नारकों के दस संज्ञाएँ हैं । १०७. इसी प्रकार वैमानिकों तक सभी दण्डक वाले जीवों को दस-दस संज्ञाएँ हैं । वेदना- पद VEDANA-PAD (SEGMENT OF PAIN) १०८. णेरइया णं दसविधं वेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा-स पिवासं, कंडुं, परज्झं, भयं, सोगं, जरं, वाहिं । 106. In the same way naaraks (infernal beings) also have ten sanjnas. 5 107. In the same way all beings of all dandaks up to Vaimaniks also have 卐 ten sanjnas each. 卐 F १०८. नारक जीव दस प्रकार की वेदनाओं का अनुभव करते रहते हैं, जैसे- (१) शीत वेदना, दशम स्थान - सीतं, उसिणं, 27 55 5 5 5 55 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 55 5955 55 5 55 55 595 55 2 खुधं, (529) Jain Education International 卐 For Private & Personal Use Only फ्र Tenth Sthaan 卐 5 (६) परजन्यवेदना (परतंत्रता का या परजनित कष्ट), (७) भय वेदना, (८) शोक वेदना, (९) जरा 5 F 5 वेदना, (१०) व्याधि वेदना । (जहाँ शीत वेदना होती है, वहाँ उष्ण नहीं, जहाँ उष्ण वेदना होती है, वहाँ 5 शीत नहीं होती ) । 卐 (२) उष्ण वेदना, (३) क्षुधा वेदना, (४) पिपासा वेदना, (५) कण्डू वेदना ( खुजली का कष्ट ), 5 卐 卐 卐 555555மிதிதததமிமிமிமிதததததததததததததததததது www.jainelibrary.org

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