Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 611
________________ 白F $55 5 5 55555555555 F 555555 5555555555听听听听听听听听听听听听听听听 मतंगया य भिंगा, तुडितंगा दीव जोति चित्तंगा। चित्तरसा मणियंगा, गेहागारा अणियणा य॥१॥ (संग्रहणी-गाथा) १४२. सुषम-सुषमा काल में दस प्रकार के वृक्ष उपभोग के लिए सुलभता से प्राप्त होते हैं, जैसेॐ (१) मदाग-शरीर के लिए पौष्टिक रस देने वाले। (२) भृग-भोजन के लिए आवश्यक पात्र आदि के देने वाले। (३) त्रुटितांग-मनोरंजन के लिए वादित्रध्वनि उत्पन्न करने वाले। (४) दीपांग-प्रकाश करने के वाले। (५) ज्योतिरंग-सूर्य के समान उष्णता उत्पन्न करने वाले। (६) चित्रांग-अनेक प्रकार की ॐ माला-पुष्प उत्पन्न करने वाले। (७) चित्ररस-अनेक प्रकार के मनोज्ञ रस देने वाले। (८) मणि-अंग- + आभरण प्रदान करने वाले। (९) गेहाकार-आश्रय के लिए घर के आकार वाले। (१०) अनग्न-नग्नता * को ढाकने वाले। (विशेष वर्णन जीवाभिगम तृतीय प्रतिपत्ती) 142. During the Sukham-sukhama kaal (period of extreme happiness) ten kinds of kalp-vriksha (wish fulfilling trees) were easily available for subsistence-(1) Madaanga-providing nutritious juice, (2) Bhringproviding pots (etc.) for food, (3) Trutitang-producing instrumental music for entertainment, (4) Dipang-producing light, (5) Jyotirangproducing heat (like the sun), (6) Chitrang-providing a variety of flowers and garlands, (7) Chitrarasa-providing a variety of tasty juices, (8) Mani-ang-providing ornaments, (9) Gehakar--house-shaped, used as abodes, (10) Anagnak--used for covering nudity (providing dress). (more details available in Jivabhigam, third Pratipatti). कुलकर-पद KULAKAR-PAD (SEGMENT OF CLAN FOUNDERS) १४३. जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे तीताए उस्सप्पिणीए दस कुलगरा हुत्था, तं जहा सयंजले सयाऊ य, अणंतसेणे व अजितसेणे य। कक्कसेणे भीमसेणे महाभीमसेणे य सत्तमे॥१॥ दढरहे दसरहे, सयरहे। (संग्रहणी गाथा) १४४. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगामीसाए उस्सप्पिणी दस कुलगरा भविस्संति, तं जहा+ सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, संमती, पडिसुते, दढधणू, दसधणू, सतधणू। म १४३. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, अतीत उत्सर्पिणी में दस कुलकर उत्पन्न हुए थे, जैसे-(१) स्वयंजल (शतजल), (२) शतायु, (३) अनन्तसेन, (४) अजितसेन, (५) कर्कसेन, ॐ (६) भीमसेन, (७) महाभीमसेन, (८) दृढ़रथ, (९) दशरथ, (१०) शतरथ। १४४. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, आगामी उत्सर्पिणी में दस कुलकर होंगे, जैसेॐ (१) सीमंकर, (२) सीमन्धर, (३) क्षेमकर, (४) क्षेमन्धर, (५) विमलवाहन, (६) सन्मति, 9 (७) प्रतिश्रुत, (८) दृढधनु, (९) दशधनु, (१०) शतधनु। दशम स्थान (547) Tenth Sthaan Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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