Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 606
________________ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$ $$$ ॐ धर्म-पद DHARMA-PAD (SEGMENT OF DHARMA) १३५. दसविधे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा-गामधम्मे, णगरधम्मे, रट्ठधम्मे, पासंडधम्मे, कुलधम्मे, ॐ गणधम्मे, संघधम्मे, सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे। १३५. धर्म दस प्रकार का है, जैसे-(१) ग्रामधर्म-गाँव की परम्परा या व्यवस्था का पालन करना। + (२) नगरधर्म-नगर की परम्परा या व्यवस्था का पालन करना। (३) राष्ट्रधर्म-राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य का पालन करना। (४) पाषण्डधर्म-पापों का खण्डन करने वाला आचार अथवा सम्प्रदायों का धार्मिक क्रियाकाण्ड। (५) कुलधर्म-कुल के परम्परागत आचार का पालन करना। (६) गणधर्म-गणतंत्र राज्यों 卐 की परम्परा या व्यवस्था का पालन करना। (७) संघधर्म-संघ की समाचारी, मर्यादा और व्यवस्था का पालन करना। (८) श्रुतधर्म-द्वादशांग श्रुत की आराधना या अभ्यास करना। (९) चारित्रधर्म-श्रमण धर्म + व १७ प्रकार के संयम की आराधना करना, चारित्र का पालन। (१०) अस्तिकायधर्म-अस्तिकाय अर्थात् बहुप्रदेशी द्रव्यों का धर्म (स्वभाव)। 135. Dharma (duty or religion) are of ten kinds—(1) Gram-dharma (village duty)--to follow the village traditions customs and codes. (2) Nagar-dharma (city duty)--to follow the village traditions customs and codes. (3) Rashtra-dharma (national duty)—to follow national duties. (4) Pakhand-dharma (heretic religion)-to follow conduct that 45 does not defy sins, also to observe hollow rituals of heretic sects.! 4. (5) Kula-dharma (family duty)—to follow family traditions and codes. (6) Gana-dharma (republic duty)-to follow the customs and codes of republic system. (7) Sangh-dharma (duty of religious organization) to follow praxis, discipline and codes of the religious organization. ! (8) Shrut-dharma--to study and worship the twelve limbed Jain canon. (9) Chaaritra dharma-to practice and follow Jain religion and 17 kinds of ascetic-discipline; to practice ascetic conduct. (10) Astikaya-dharmathe properties of Astikaya or agglomerative entities. विवेचन-प्रस्तुत सूत्र की भावना को समझाने के लिए आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने प्रारम्भ में धर्म की छह परिभाषाएँ दी हैं-(१) धर्म-वस्तु का अपना स्वभाव, (२) जाति, वर्ण, समुदाय आदि से के सम्बन्धित कर्त्तव्य व कार्य व्यवहार, (३) समाज की सुरक्षा व शान्ति के लिए निश्चित किया आचरण व वृत्ति। (४) देश व राष्ट्र से सम्बन्धित व्यवहार, (५) उचित-अनुचित का विचार करने वाला, सम्यक् ॐ विवेक। (६) ईश्वर तथा परलोक आदि से सम्बन्धित विश्वास तथा आराधना की विधि। धर्म के इन के सभी अर्थों के परिप्रेक्ष्य में सूत्रोक्त दस धर्म को समझना चाहिए। 5 Elaboration In order to elaborate the sentiment of this aphorism Acharya Shri Atmamarm ji M. has mentioned six meanings of the term + dharmd-(1) the intrinsic nature of a thing; (2) the duties and code of EEEEEEE Ir E 听听听听听听听听 | स्थानांगसूत्र (२) ... ...... 6542) Sthaananga Sutra (2) 8555555555555555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org B

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