Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 596
________________ 5555 5 ))) )))))))))))) 卐555555555555555555555555555555555555555555555555 ११२. उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा आणंदे कामदेवे आ, गाहावतिचूलणीपिता। सुरादेवे चुल्लसतए, गाहावतिकुंडकोलिए॥ सद्दालपुत्ते महासतए, णंदिणीपिया लेइयापिता॥१॥ ११२. उपासकदशा के दस अध्ययन हैं, जैसे-(१) आनन्द, (२) कामदेव, (३) गृहपति चूलिनीपिता, (४) सुरादेव, (५) चुल्लशतक, (६) गृहपति कुण्डकोलिक, (७) सद्दालपुत्र, 9 (८) महाशतक, (९) नन्दिनीपिता, (१०) लेयिका (सालिही) पिता। 112. There are ten chapters in Upasak Dasha-(1) Anand, (2) Kaam vi Deva, (3) Grihapati Chulinipita, (4) Suradeva, (5) Chullashatak, (6) Grihapati Kundakolik, (7) Saddalaputra, (8) Mahashatak, (9) Nandinipita and (10) Leyika (Salihi) pita. ११३. अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा णमि मातंगे सोमिले, रामगुत्ते सुदंसणे चेव। जमाली य भगाली य, किंकसे चिल्लए ति य॥ फाले अंबडपुत्ते य एमेते दस आहिता॥१॥ ११४. अणुत्तरोववातियदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा इसिदासे य धण्णे य, सुणक्खत्ते कातिए ति य। संठाणे सालिभद्दे य, आणंदे तेतली ति य॥ दसण्णभद्दे अतिमुत्ते, एमेते दस आहिया॥१॥ ११३. अन्तकृत्दशा के दस अध्ययन हैं, जैसे-(१) नमि, (२) मातंग, (३) सोमिल, (४) रामगुप्त, (५) सुदर्शन, (६) जमाली, (७) भगाली, (८) किंकष, (९) चिल्वक फाल. (१०) अम्बडपुत्र। ११४. अनुत्तरोपपातिकदशा के दस अध्ययन हैं, जैसे-(१) ऋषिदास, (२) धन्य, (३) सुनक्षत्र, (४) कार्तिक, (५) संस्थान, (६) शालिभद्र, (७) आनन्द, (८) तेतली, (९) दशार्णभद्र, (१०) अतिमुक्त। 113. There are ten chapters in Antakrit Dasha-(1) Nami; (2) Matang, 卐 (3) Somil, (4) Ramagupta, (5) Sudarshan, (6) Jamali, (7) Bhagali, (8) Kinkash, (9) Chilvak Phaal and (10) Ambadaputra. ___114. There are ten chapters in Anuttaropapatik Dasha-(1) Rishidas, (2) Dhanya, (3) Sunakshatra, (4) Kartik, (5) Samsthan, (6) Shalibhadra, \ (7) Anand, (8) Tetali, (9) Dasharnabhadra and (10) Atimukta. विवेचन-सूत्र ११३-११४ में अन्तकृद्दशा तथा अनुत्तरोपपातिक दशा के नाम और गणना में अन्तर 卐 है। इसका कारण वाचना-भेद हो सकता है। वर्तमान में प्रचलित नाम आदि के लिए मूल सूत्र देखें। | स्थानांगसूत्र (२) (532) Sthaananga Sutra (2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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