Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 576
________________ 255955 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 55955 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 5 5 52 फफफफफफफफफफफफफफा 卐 卐 (10) Addha-addha-mishrak-vachan-to give mixed statement with regard to addha-addha or divisions of time (parts of day or night). For example to say for some specific purpose that it is noon when only first quarter of the day has passed. + दृष्टिवाद - पद DRISHTIVAAD-PAD (SEGMENT OF DRISHTIVAAD) ९२. दिट्टिवायस्स णं दस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - दिट्टिवाएति वा, हेउवाएति वा, भूयवाएति वा, तच्चावाएति वा, सम्मावाएति वा, धम्मावाएति वा, भासाविजएति वा, पुव्वगतेति वा, अणुजोगगतेति वा, सव्वपाणभूतजीवसत्तसुहावहेति वा । ९२. दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग के दस नाम हैं (१) दृष्टिवाद - अनेक दृष्टियों से या अनेक नयों की अपेक्षा वस्तु तत्त्व का प्रतिपादन करने वाला । ( २ ) हेतुवाद - हेतु - प्रयोग से या अनुमान के द्वारा वस्तु की सिद्धि करने वाला । (३) भूतवाद - भूत अर्थात् सद्-भूत पदार्थों का निरूपण करनेवाला । (४) तत्त्ववाद या तथ्यवाद - सारभूत तत्त्व का, या यथार्थ तथ्य का प्रतिपादन करने वाला । (५) सम्यग्वाद - पदार्थों के सत्य अर्थ का प्रतिपादन करने वाला । (८) पूर्वगत - सर्वप्रथम गणधरों के द्वारा ग्रन्थित या रचित उत्पादपूर्व आदि का वर्णन करने वाला। ( ९ ) अनुयोगगत - प्रथमानुयोग, गण्डिकानुयोग आदि अनुयोगों का वर्णन करने वाला । (६) धर्मवाद - वस्तु के पर्यायरूप धर्मों का अथवा चारित्ररूप धर्म का प्रतिपादन करने वाला । (७) भाषाविचय या भाषाविजय - सत्य आदि अनेक प्रकार की भाषाओं का विचय अर्थात् निर्णय करने वाला अथवा भाषाओं की विजय अर्थात् समृद्धि का वर्णन करने वाला । y 92. There are ten names of Drishtivaad, the twelfth Anga(1) Drishtivaad-that which propagates fundamentals from many angles or nayas (stand-points). (2) Hetuvaad-that which establishes things through cause hypothesis. Jain Education International (3) Bhoot-vaad-that which discusses bhoot (eternal realities). (4) Tattvavaad-that which propagates basic fundamentals and evident reality. (5) Samyagvaad — that which propagates the true meaning of things. स्थानांगसूत्र (२) Sthaananga Sutra (2) (512) 4 Y Y (१०) सर्वप्राण - भूत - जीव- सत्त्व - सुखावह - सभी द्वीन्द्रियादि प्राणी, वनस्पतिरूप भूत, पंचेन्द्रिय जीव ५ और पृथिवी आदि सत्त्वों के सुखों का प्रतिपादन करने वाला। or For Private & Personal Use Only Y y Y ५ 12hhhhhhhh फ्र फ्र ५ ५ ५ ५ www.jainelibrary.org

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