Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 583
________________ फफफफफफफफफफफफफफफफ சு 5 विवेचन - 'विग्रह' शब्द के तीन अर्थ होते हैं-वक्र या मोड़ और शरीर तथा आकाश विभाग का फ्र अतिक्रमण कर गमन करना । प्रारम्भ के आठ पदों में से चार गतियों में उत्पन्न होने वाले जीव ऋजु और वक्र दोनों प्रकार से गमन करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक गति का प्रथम पद ऋजुगति का बोधक है और 卐 द्वितीयपद वक्रगति का बोधक है, यह स्वीकार किया जा सकता है। किन्तु सिद्धिगति तो सभी जीवों की विग्रहरहित ही होती है अर्थात् सिद्धजीव सीधी ऋजुगति से मुक्ति प्राप्त करते हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर टीकाकार ने 'सिद्धिविग्गहगइ' त्ति सिद्धावविग्रहेण - अवक्रेण गमनं 'सिद्ध्यविग्रहगतिः, अर्थात् सिद्धि-मुक्ति में अविग्रह से बिना मुड़े जाना, ऐसी निरुक्ति करके दसवें पद की संगति बिठलाई है। नवें 5 पद को सामान्य अपेक्षा से और दसवें पद को विशेष की विवक्षा से कहकर भेद बताया है। दसवें भेद में 5 शब्द केवल 'पारलौकिक गति' के अर्थ का ही सूचक है I 卐 卐 卐 5 Elaboration—The terms Vigraha has three meanings. 'Vakra' or oblique, 5 'moad' or turn and to move transgressing the body and a section of space. The first eight statements inform that beings taking birth in four gatis (genuses) have both straight and oblique movement. Thus it can be interpreted that the first statement about each genus relates to riju gati (straight movement) and the second relates to vigraha gati (oblique movement). However, reincarnation as Siddha is always with straight movement and never with oblique movement. Keeping this in view the commentator (Tika) has interpreted the tenth statement 'siddha vigraha gati (reincarnation with oblique movement as Siddha)' as siddhi-avigraha gati or reincarnation in state of siddhi without oblique movement. The ninth statement is simple whereas the tenth is with special nuance. The tenth statement is thus indicative of supernatural movement. 卐 卐 *******************************தமிழிதின் 卐 विग्रहगति मुण्ड - पद MUND-PAD (SEGMENT OF VICTORS) ९९. दस मुंडा पण्णत्ता, तं जहा- सोतिंदियमुंडे, ( चक्खिंदियमुंडे, जिब्भिंदियमुंडे), फासिंदियमुंडे, कोहमुंडे, (माणमुंडे) मायांमुंडे) लोभमुंडे, सिरमुंडे । घाणिदियमुडे, 5 फ्र 卐 फ्र ९९. यहाँ 'मुण्ड' शब्द से ( तत्सम्बन्धी दोषों को दूर करने का भाव प्रकट किया है) दस प्रकार के 5 हैं, जैसे- (१) श्रोत्रेन्द्रियमुण्ड - श्रोत्रेन्द्रिय के विषय का मुण्डन (त्याग) करने वाला । (२) चक्षुरिन्द्रियमुण्डचक्षुरिन्द्रिय के विषय का त्याग करने वाला, (३) घ्राणेन्द्रियमुण्ड - घ्राणेन्द्रिय के विषय का त्याग करने वाला। (४) रसनेन्द्रियमुण्ड - रसनेन्द्रिय के विषय का त्याग करने वाला । (५) स्पर्शनेन्द्रियमुण्ड - स्पर्शनेन्द्रिय के विषय का त्याग करने वाला । (६) क्रोधमुण्ड-क्रोध कषाय का त्याग। (७) मानमुण्ड - मानकषाय का त्याग । (८) मायामुण्ड - मायाकषाय का त्याग । ( ९ ) लोभमुण्ड - लोभकषाय का त्याग करने वाला । (१०) शिरोमुण्ड - सिर के केशों का मुण्डन करने-कराने वाला । 99. Mund (victors over indulgence of sense organs or who have control over sense organs or who are equanimous towards good and bad sensations) दशम स्थान (519) Jain Education International 卐 5 卐 Tenth Sthaan For Private & Personal Use Only 5 卐 卐 卐 ********************************தமி*தி* 卐 www.jainelibrary.org

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