Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 570
________________ 5 5 5555555555555559 (modesty) due to aversion and immodesty. (10) SanrakshanopaghatImpairment of parigraha viraman (vow of non-possession) due to fondness for body and possessions. ८५. दसविधा विसोही पण्णत्ता, तं जहा-उग्गमविसोही, उप्पायविसोही, (एसणविसोही, परिकम्मविसोही, परिहरणविसोही, णाणविसोही, दंसणविसोही, चरित्तविसोही, अचियत्तविसोही), सारक्खणविसोही। ८५. विशोधि दस प्रकार की है-(१) उद्गम-विशोधि-उद्गम-सम्बन्धी दोषों की विशुद्धि। 卐 (२) उत्पादना-विशोधि-उत्पादन-सम्बन्धी दोषों की विशुद्धि । (३) एषणा-विशोधि-एषणा-सम्बन्धी दोषों + की विशुद्धि। (४) परिकर्म-विशोधि-वस्त्र-पात्रादि सँवारने से उत्पन्न दोषों की विशुद्धि। (५) परिहरण विशोधि-अकल्प्य उपकरणों के उपभोग से उत्पन्न दोषों की विशुद्धि। (६) ज्ञान-विशोधि-ज्ञान के अंगों का + यथाविधि अभ्यास न करने से लगे हुए दोषों की विशुद्धि। (७) दर्शन-विशोधि-सम्यग्दर्शन में लगे हुए दोषों की विशुद्धि। (८) चारित्र-विशोधि-चारित्र में लगे हुए दोषों की विशुद्धि। (९) अप्रीति-विशोधिॐ अप्रीति की विशुद्धि (१०) संरक्षण-विशोधि-संयम के साधनभूत उपकरणों में मूर्छादि रखने से लगे हुए + दोषों की विशुद्धि। 85. Vishodhi (purification) is of ten kinds (related to faults mentioned $ in preceding aphorism)-(1) Udgam-vishodhi-purification of faults of + Udgam. (2) Utpadan-vishodhi-purification of faults of Utpadan. (3) Eshana-vishodhi-purification of faults of due to faults of Eshana. (4) Parikarm-vishodhi-purification of faults of Parikarm. (5) Pariharanvishodhi-purification of faults of Pariharan. (6) Jnana-vishodhiPurification of faults related to jnana. (7) Darshan-vishodhiPurification of faults related to darshan (perception/faith). (8) Chaaritravishodhi-Purification of faults related to chaaritra. (9) Apritivishodhi--Purification of faults related to Apriti. (10) Sanrakshanvishodhi-Purification of faults related to Sanrakshan. संक्लेश-असंक्लेश-पद SANKLESH-ASANKLESH-PAD (SEGMENT OF PERTURBED AND UNPERTURBED STATE OF MIND) ८६. दसविधे संकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा-उवहिसंकिलेसे, उवस्सयसंकिलेस, कसायसंकिलेसे, भत्तपाणसंकिलेसे, मणसंकिलेसे, वइसंकिलेसे, कायसंकिलेसे, णाणसंकिलेसे, दंसण-संकिलेसे, चरित्तसंकिलेसे। ८६. संक्लेश-(मानसिक विक्षोभ व असमाधि) दस प्रकार का है-(१) उपधि-संक्लेशवस्त्र-पात्रादि उपधि के निमित्त से होने वाला। (२) उपाश्रय-संक्लेश-उपाश्रय या निवास स्थान के ऊ निमित्त से होने वाला। (३) कषाय-संक्लेश-क्रोधादि के निमित्त से होने वाला। (४) भक्त-पान | स्थानांगसूत्र (२) (506) Sthaananga Sutra (2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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