Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 550
________________ फ्र 卐 卐 步 卐 卐 5 卐 卐 5 5 卐 卐 卐 40. At its base the expanse of Manushottar Parvat is ten hundred twenty two (1022) Yojan. 41. All Anjanak Parvats are ten hundred (1000) Yojan deep in the ground, ten thousand Yojans wide at ground level, and ten hundred (1000) Yojan wide at the top. 42. All Dadhimukh mountains 5 卐 are ten hundred Yojan deep in the ground, uniformly wide, silo shaped and ten hundred (one thousand) Yojan in expanse. 43. All Ratikar mountains are ten hundred Yojan high, ten hundred Gavyut (Kosa) deep 卐 in the ground, uniformly wide, dish shaped and ten thousand Yojan in expanse. 44. All Ruchakavar Parvats are ten hundred (1000) Yojan deep in the ground, ten thousand Yojans wide at ground level, and ten hundred (1000) Yojan wide at the top. 45. The Kundalavar Parvats are फ्र also like Ruchakavar Parvats. 卐 卐 (4) Hairanyavat area, (5) Harivarsh area, (6) Ramyak-varsh and (7) Purva Videh area, (8) Apar Videh area, (9) Devakuru area and (10). Uttar-kuru area. विविध पर्वत - पद VIVIDH PARVAT-PAD (SEGMENT OF MISCELLANEOUS MOUNTAINS) ४०. माणुसुत्तरे णं पव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते । ४१. सव्वेवि णं अंजण - पव्वता दस जोयणसयाई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं उवरिं दस जोयणसताइं विक्खंभेणं पण्णत्ता । ४२. सव्वेवि णं दहिमुहपव्वता दस जोयणसताइं उबेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठिता, दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेण पण्णत्ता । ४३. सव्वेवि णं रतिकरपव्वता दस जोयणसताई उड्डुं उच्चत्तेणं, दसगाउयसताइं उव्वेहेणं सव्वत्थ समा झल्लरिसंठिता, दस जोयणसताई विक्खंभेणं पण्णत्ता । ४४. रुयगवरे णं पव्वते दस जोयणसताई उब्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं उवरिं दस जोयणसताइं विक्खंभेणं पण्णत्ते । ४५. एवं कुंडलवरेवि । फ्रा दस ४०. मानुषोत्तर पर्वत मूल में दस सौ बाईस (१०२२) योजन विस्तार वाला है । ४१. सभी अंजनक पर्वत दस सौ (१०००) योजन गहरे, मूल में दश हजार योजन विस्तृत और ऊपर दस सौ (१०००) योजन विस्तार वाले हैं । ४२. सभी दधिमुखपर्वत भूमि में दस सौ योजन गहरे, सर्वत्र समान ५ विस्तार वाले, पल्य के आकार से संस्थित और दस हजार योजन चौड़े हैं । ४३. सभी रतिकर पर्वत y सौ (१०००) योजन ऊँचे, दस सौ गव्यूति (कोश) गहरे, सर्वत्र समान, झल्लरी के आकार के और दस हजार योजन विस्तार वाले हैं । ४४. रुचकवर पर्वत दस सौ (१०००) योजन गहरे, मूल में दस हजार 5 योजन विस्तृत और ऊपर दस सौ (१०००) योजन विस्तार वाले हैं । ४५. इसी प्रकार कुण्डलवर पर्वत भी रुचकवर पर्वत के समान है। विवेचन - (४०) मानुषोत्तर पर्वत पुष्करवर द्वीप के ठीक मध्य भाग में कुण्डलाकार है । यही मनुष्य लोक की सीमा बाँधता है। इससे बाहर मानव जाति का निवास नहीं है । ( ४१-४५) तेरहवें रुचक द्वीप स्थानांगसूत्र (२) (488) Jain Education International फफफफफफफफफफफफ For Private & Personal Use Only Sthaananga Sutra (2) hhhhh www.jainelibrary.org

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