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के ठीक मध्य भाग में गोलाकार रुचक पर्वत तथा ग्यारहवें कुण्डल द्वीप में गोलाकार कुण्डल पर्वत स्थित 卐 है। (विस्तार के लिए देखें-जीवाभिगम सूत्र)
Elaboration—(40) Manushottar Parvat is located at the center of Pushkaravar Dveep and is ring shaped. This forms the boundary of human habitation outside which there is no existence of human beings. (41-45) The circular Ruchak Parvat is located at the center of the Ruchak Dveep (thirteenth Dveep). The circular Kundal Parvat is located at the center of the Kundal Dveep (eleventh Dveep). (for details see Jivabhigam Sutra) द्रव्यानुयोग-पद DRAWANUYOGA-PAD (SEGMENT OF DISQUISITION OF ENTITIES)
४६. दसविहे दवियाणुओगे पण्णत्ते, तं जहा-दवियाणुओगे, आउयाणुओगे, एगट्ठियाणुआगे, माउयाणुओगे, एगट्ठियाणुओगे, करणाणुओगे, अप्पितणप्पिते, भाविताभाविते, बाहिराबाहिरे, सासतासासते, तहणाणे, अतहणाणे।
४६. द्रव्यानुयोग दस प्रकार का है-(१) द्रव्यानुयोग, (२) मातृकानुयोग, (३) एकाथिकानुयोग, (४) करणानुयोग, (५) अर्पितानर्पितानुयोग, (६) भाविताभावितानुयोग, (७) बाह्याबाह्यानुयोग, ज (८) शाश्वताशाश्वतानुयोग, (९) तथाज्ञानानुयोग, (१०) अतथाज्ञानानुयोग।
____46. Dravyanuyoga (disquisition of entities) is of ten kinds(1) Dravyanuyoga, (2) Matrikanuyoga, (3) Ekarthikanuyoga, (4) Karananuyoga, (5) Arpitanarpitanuyoga, (6) Bhaavitabhaavitanuyoga, (7) Bahyabahyanuyoga, (8) Shashvatashashvatanuyoga, (9) Tathajnananuyoga, and (10) Atathajnananuyoga.
विवेचन-'अनुयोग' का अर्थ है, विषय के अनुसार व्याख्या करना। अनुयोग चार प्रकार का है। जीवादि द्रव्यों की व्याख्या करने वाले अनुयोग को द्रव्यानयोग कहते हैं। जिसमें गण और पर्याय पाये जाते हैं उसे द्रव्य कहते हैं। द्रव्य के सहभागी धर्मों (ज्ञानादि) को गुण और क्रमभावी धर्मों (मनुष्य आदि) को पर्याय कहते हैं। इन गुणों और पर्यायों वाले द्रव्य का विवेचन द्रव्यानुयोग का विषय है।
(२) मातृकानुयोग-इस अनुयोग में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यरूप मातृकापद के द्वारा द्रव्यों का विवेचन है।
(३) एकाथिकानुयोग-इसमें एक अर्थ के वाचक अनेक शब्दों की व्याख्या के द्वारा द्रव्यों का विवेचन है। जैसे-सत्त्व, भूत, प्राणी और जीव, ये शब्द एक अर्थ के वाचक हैं आदि।
(४) करणानुयोग-द्रव्य की निष्पत्ति में प्रयुक्त होने वाले साधक कारण को 'करण' कहते हैं। जैसे घट की निष्पत्ति में मिट्टी, कुम्भकार, चक्र आदि। जीव की क्रियाओं में काल, स्वभाव, नियति आदि के साधक हैं। इस प्रकार द्रव्यों के साधकतम कारणों का विवेचन इस करणानुयोग का विषय है।
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| दशम स्थान
(489)
Tenth Sthaan
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