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६०३. चउव्विहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा - सुभे णाममेगे सुभविवागे, सुभे णाममेगे 5
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असुभविवागे, असुभे णाममेगे सुभविवागे, असुभे णाममेगे असुभविवागे ।
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६०३. कर्म चार प्रकार के कहे हैं। (१) शुभ और शुभविपाक - कुछ कर्म शुभ रूप में बँधते हैं और
उनका फल भी शुभ ही होता है । (२) शुभ और अशुभविपाक - कुछ कर्म शुभ परिणामों से बँधते हैं, किन्तु संक्रमण से फल अशुभ होते हैं । (३) अशुभ और शुभविपाक - कुछ कर्म अशुभ परिणामों से बँधते हैं, किन्तु संक्रमण से शुभ फल देते हैं । (४) अशुभ और अशुभविपाक - कुछ कर्म अशुभ भावों से बँधते हैं और अशुभ फल ही देते हैं ।
603. Karmas are of four kinds-(1) Shubh and shubh-vipaak-some karmas are acquired through noble thoughts and their fruits are also good. (2) Shubh and ashubh-vipaak-some karmas are acquired through noble thoughts but due to transformation their fruits are bad. (3) Ashubh and shubh-vipaak-some karmas are acquired through ignoble thoughts but due to transformation their fruits are good. (4) Ashubh and ashubh- 5 vipaak-some karmas are acquired through ignoble thoughts and their fruits are also bad.
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विवेचन-कर्म सिद्धान्त का सामान्य नियम है- शुभ कर्म का शुभफल, अशुभ कर्म का अशुभ फल ! इस नियम के अनुसार प्रथम व चतुर्थ भंग स्पष्ट है। द्वितीय तृतीय भंग में संक्रमण - सिद्धान्त का प्रतिपादन है। संक्रमण का अर्थ है एक कर्म प्रकृति का दूसरे कर्म में बदल जाना । मूल प्रकृतियों में संक्रमण नहीं होता, उत्तर प्रकृतियों में ही होता है । वेदनीय कर्म की दो उत्तर प्रकृतियाँ हैं, सात (शुभ) वेदनीय और असात (अशुभ) वेदनीय । तदनुसार
(२) कोई जीव पहले सातवेदनीय आदि शुभकर्म को बाँधता है और पीछे तीव्र कषाय से प्रेरित होकर असातवेदनीय आदि अशुभकर्म का तीव्र बन्ध करता है, तो उसका पूर्व - शुभकर्म भी असातवेदनीय पापकर्म में संक्रान्त (परिवर्तित हो जाता है अतः वह बन्धन काल का शुभ कर्म संक्रमण द्वारा अशुभ विपाक देता है।
- बद्ध सातवेदनीयादि
(३) कोई जीव पहले असातावेदनीय आदि अशुभकर्म को बाँधता है, किन्तु पीछे शुभ परिणामों की प्रबलता से सातावेदनीय आदि उत्तम अनुभाग वाले कर्म को बाँधता है। ऐसे जीव का पूर्व - बद्ध अशुभ कर्म भी शुभकर्म के रूप में संक्रान्त हो जाता है, अतः वह शुभ विपाक को देता है।
Elaboration-The general rule of Karma theory is-good karmas give good fruits and bad karmas give bad fruits. The first and fourth alternatives of the aforesaid aphorism follow this rule. Second and third alternative relates to the theory of transformation (sankraman). Sankraman means transformation of one species (prakriti) of karma into another. Transformation is applicable only to secondary species not the
चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
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Fourth Sthaan: Fourth Lesson
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