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i (10) Darshanabhigam — to have cursory view of a thing through avadhidarshan or other such capacity. (11) Jnanabhigam-to know things through avadhi-jnana. (12) Jivabhigam — to know about beings through avadhi-jnana. (13) Ajivabhigam-to know about matter through avadhijnana. All these actions are performed in all the six directions.
आहार- पद AHAR-PAD (SEGMENT OF FOOD)
४१. छहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे आहारमाहारेमाणे णातिक्कमति, तं जहावेयण - वेयावच्चे, ईरियट्ठाए य संजमट्ठाए ।
तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिंता ॥ १ ॥
४२. छहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे आहारं वोच्छिंदमाणे णातिक्कमति, तं जहाआतंके उवसग्गे, तितिक्खणे बंभचेरगुत्तीए । पाणिदया - तवहेउं, सरीवुच्छेयणट्ठाए ॥१ ॥
४१. श्रमण निर्ग्रन्थ छह कारणों से आहार करता हुआ भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं
करता है - (१) वेदना - भूख की पीड़ा मिटाने के लिए। (२) वैयावृत्य करने के लिए। (३) ईर्यासमिति का पालन करने के लिए। (४) संयम की रक्षा के लिए।
चिन्तन करने के लिए।
षष्ठ स्थान
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४२. श्रमण निर्ग्रन्थ छह कारणों से आहार का परित्याग करता हुआ भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है - (१) आतंक - ज्वर आदि आकस्मिक रोग हो जाने पर । (२) उपसर्ग - देव, मनुष्य, तिर्यंच कृत उपद्रव होने पर । (३) तितिक्षण - ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए । (४) प्राणियों की दया के लिए। (५) तप की वृद्धि के लिए। (६) शरीर का व्युत्सर्ग करने के लिए।
41. A Shraman Nirgranth does not defy the word of Bhagavan if he takes food for six reasons-(1) vedana-to remove pain of hunger, (2) vaiyavritya-for serving ascetics, (3) iryasamiti-for observing careful_movement, (4) samyam — for protecting ascetic-discipline, (5) pran-dharan-for survival and (6) dharma-chintan-for religious contemplation.
42. A Shraman Nirgranth does not defy the word of Bhagavan if he abandons food for six reasons-(1) atank-due to sudden fever or other ailment, (2) upsarg-due to divine, human or animal affliction, (3) titikshan-to protect celibacy, (4) compassion-for compassion towards living beings, (5) tap-for extending austerities (6) vyutsarg - for abandoning the body.
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प्राण - धारण किये रखने के लिए। (६) धर्म का
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Sixth Sthaan
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