Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 382
________________ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听F5555FFFFFFFFFFF F5555听听听听听 ॐ आरम्भ, (७) अजीवकायिक आरम्भ। ८५. इसी प्रकार अनारम्भ सात प्रकार का है, जैसे पृथिवीकायिक अनारम्भ आदि। ८६. संरम्भ सात प्रकार का है, जैसे-(१) पृथ्वीकायिक संरम्भ आदि। ॐ ८७. असंरम्भ सात प्रकार का है-(१) पृथ्वीकायिक असंरम्भ आदि। ८८. समारम्भ सात प्रकार का 卐 है-(१) पृथ्वीकायिक समारम्भ आदि। ८९. असमारम्भ सात प्रकार का है-(१) पृथ्वीकायिक 5 असमारम्भ आदि। 84. Arambh (sinful activity) is of seven kinds—(1) Prithvikayik arambh 41 (sinful activity related to earth-bodied beings), (2) Apkayik arambh (sinful activity related to water-bodied beings), (3) Tejaskayik arambh (sinful activity related to fire-bodied beings), (4) Vayukayik arambh (sinful activity related to air-bodied beings), (5) Vanaspatikayik arambh (sinful activity related to plant-bodied beings), (6) Tras-kcyik arambh (sinful activity related to mobile-bodied beings) and (7) Ajivakayik arambh (sinful activity related to non-being). 85. In the same way anarambh (not indulging in sinful activity) is of seven kinds including Prithvikayik anarambh. 86. Samrambh (resolve to indulge in sinful activity) is of seven kinds including Prithvikayik samrambh. 87. Asamrambh (not to resolve to indulge in sinful activity) is of seven kinds including Prithvikayik 45 asamrambh. 88. Samaarambh (to arrange for means of indulging in sinful activity) is of seven kinds including Prithvikayik samaarambh. 89. Asamaarambh (not to arrange for means of indulging in sinful si activity) is of seven kinds including Prithvikayik asamaarambh. विवेचन-समवायांग के सत्तरहवें समवाय में संयम-असंयम के सत्रह भेद बताये हैं। उन्हीं के यहाँ ॥ सात-सात प्रकार बताये हैं। मुख्यतः संयम दो ही प्रकार का है। (१) जीवकाय संयम, (२) अजीवकाय संयम। छह काय के जीवों की हिंसा न करना व रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहना जीवकाय संयम है। वस्त्र-पात्र आदि उपकरणों के व्यवहार में यतना व उपयोग रखना अजीवकाय संयम है। संयम का है विपरीत असंयम है। आरम्भ, संरम्भ, समारम्भ इनका अर्थ क्रमशः इस प्रकार है आरंभ उद्दवओ, परितापकरो भवं समारंभा। संकप्पो संरंभो, सुद्ध नयाणं तु सचेसिं॥ ___ संरम्भ-प्रवृत्ति का संकल्प समारंभ-प्रवृत्ति के लिए साधन सामग्री जुटाना। आरम्भ-प्रवृत्ति का प्रारम्भ करना। (तत्त्वार्थवार्तिक पृष्ठ ५१३) अथवा आरम्भ-जीव हिंसा करना। संरम्भ-जीव हिंसा का मन में संकल्प करना। समारम्भ-जीवों को परिताप व दुःख पहुँचाना। इनका विरोधी तत्त्व है, अनारम्भ, म असंरम्भ और असमारम्भ। Elaboration-In the seventeenth chapter of Samvayanga Sutra \i seventeen kinds of samyam-asamyam have been mentioned. They have 85555555555555555FFFFFF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。 | स्थानांगसूत्र (२) (324) Sthaananga Sutra (2) B) ))))))))))))))) )) ))555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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