Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 397
________________ 15555555555555 i i endowed with it. (3) Chaaritra-vinaya-to show modesty and respect towards right conduct and those endowed with it. (4) Manah-vinaya-to 5 restrain evil and engage in good tendencies of mind. (5) Vaag-vinaya — to 5 restrain evil and engage in good tendencies of speech. (6) Kaya-vinaya— to restrain evil and engage in good tendencies of body. (7) Lokopacharvinaya-to be modest towards one and all following the social norms and customs. 卐 १३१. पसत्थमणविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा - अपावए, असावज्जे, उ. किरिए, णिरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे, अभूताभिसंकणे । १३२. अपसत्थमणविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा - पावए, सावज्जे, सकिरिए, सउवक्केसे, अण्हयकरे, छविकरे, भूताभिसंकणे । १३१. प्रशस्त मनोविनय सात प्रकार का है - ( १ ) अपापक – मनोविनय - पाप - रहित निर्मल मनोवृत्ति रखना तथा शुभचिन्तन करना । (२) असावद्या- मनोविनय - सावद्य तथा गर्हितकार्य करने का विचार न करना । (३) अक्रिय - मनोविनय - मन को कायिकी, अधिकरणिकी आदि क्रियाओं में प्रवृत्त नहीं करना । ( ४ ) निरुपक्लेश-मनोविनय - मन को क्लेश, शोक आदि में प्रवृत्त न करना । (५) अनास्रवकर - मनोविनय - कर्मों का आस्रव कराने वाले हिंसादि पापों से मन को विरत रखना । ( ६ ) अक्षयकर- मनोविनय - प्राणियों की पीड़ा करने वाले कार्यों से मन को दूर रखना । (७) अभूताभिशंकन - मनोविनय - दूसरे जीवों को भय या शंका आदि उत्पन्न करने वाले कार्यों में मन को प्रवृत्त नहीं करना । १'३२. अप्रशस्त मनोविनय सात प्रकार का है - ( १ ) पापक - अप्रशस्त मनोविनय - पाप कार्यों को करने का चिन्तन करना । ( २ ) सावद्य अप्रशस्त मनोविनय - गर्हित, लोक-निन्दित कार्यों को करने का चिन्तन करना । ( ३ ) सक्रिय अप्रशस्त मनोविनय - कायिकी आदि पापक्रियाओं के करने का चिन्तन करना । (४) सोपक्लेश अप्रशस्त मनोविनय-क्लेश, शोक आदि में मन को लगाना । (५) आस्रवकर अप्रशस्त मनोविनय - कर्मों का आस्रव कराने वाले कार्यों में मन को लगाना । (६) क्षयिकर अप्रशस्त मनोविनय - प्राणियों को पीड़ा पहुँचाने वाले कार्यों में मन को लगाना । ( ७ ) भूताभिशंकन अप्रशस्त मनोविनय - दूसरे जीवों को भय, शंका आदि उत्पन्न करने वाले कार्यों में मन को लगाना । 131. Prashast manovinaya (noble mental modesty ) is of seven kinds— (1) Apaapak-manovinaya-to be in a pure mental state free of sin and have noble thoughts. (2) Asavadya-manovinaya-not to think of indulging in sinful and despicable activity. (3) Akriya-manovinaya-not to think of indulging in physical, acquisitive and other such physical activities. (4) Nirupaklesh-manovinaya — to avoid thoughts of pain, grief and other 5 sad states. (5) Anasravakar-manovinaya-to avoid thoughts of sins, like violence, that cause inflow of karmas. (6) Akshayakar-manovinaya-to avoid thoughts of causing pain to living beings. (7) Abhootabhishankanmanovinaya-to avoid thoughts of indulging in activities that terrify or confuse living beings. 132. Aprashast manovinaya (ignoble mental Seventh Sthaan फ्र सप्तम स्थान Jain Education International 7555955 5 5 559 5555 5559 595 595959 55 5 5 5 5 59595955555595952 (339) For Private & Personal Use Only 卐 www.jainelibrary.org

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