Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 515
________________ 2 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 55555555 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 55595 O noble ones! As I have defined eight madsthaans (causes of conceit), nine brahmacharya guptis (shields of celibacy), ten kinds of shramanफ religions ( ascetic conduct ) ...and so on up to ... thirty three ashatana (disrespect) for Shraman nirgranths, in the same way Arhat Mahapadma will define eight madsthaans (causes of conceit), nine brahmacharya guptis (shields of celibacy), ten kinds of shramanreligions (ascetic conduct ) ...and so on up to... thirty three ashatana 卐 (disrespect) for Shraman nirgranths: 卐 5 ६२. (च) से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं णग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अणुवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्टसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धवित्तीओ पण्णत्ताओ। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं णग्गभावं (मुंडभावं) अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अणुवाहणयं भूमिसेज्जं फलगसेज्जं कट्टसेज्जं केसलोयं बंभचेरवासं परघरपवेसं) लद्धावलद्धवित्ती पण्णवेहिति । से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मिएति वा उद्देसिएति वा मीसज्जाएति वा अज्झोयरएति वा पूतिए कीते पामिच्चे अच्छेज्जे अणिसट्टे अभिहडेति वा कंतारभत्तेति वा 5 दुब्भिक्खभत्तेति वा गिलाणभत्तेति वा वद्दलियाभत्तेति वा पाहुणभत्तेति वा मूलभोयणेति वा कंदभोयणेति वा फलभोयणेति वा बीयभोयणेति वा हरियभोयणेति वा पडिसिद्धे । एवामेव 5 महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मियं वा (उद्देसियं वा मीसज्जायं वा अज्झोयरयं वा पूतियं कीतं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं वा कंतारभत्तं वा दुब्भिक्खभत्तं वा गिलाणभत्तं वा 5 वद्दलियाभत्तं वा पाहुणभत्तं वा मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा) हरित भोयणं वा पडिसेहिस्सति । फ्र से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतिए सपडिक्कमणे अचेलए धम्मे पण्णत्ते । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतियं (सपिडक्कमणं) अचेलगं धम्मं पण्णवेहिति से जहाणाम अज्जो म समणोवासगाणं पंचाणुव्यतिए सत्तसिक्खावतिए - दुवालसविधे सावगधम्मे पण्णत्ते । एवामेव महापउमेवि अरहा समणोवासगाणं पंचाणुव्वतियं (सत्तसिक्खावतियं दुवालसविधं ) सावगधम्मं पण्णवेस्सति । ६२. (च) आर्यों ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे नग्नभाव, मुण्डभाव, स्नान - त्याग, अदन्त-धावन, छत्र-धारण - त्याग, उपानह ( जूता ) त्याग, भूमिशय्या, फलकशय्या, काष्ठशय्या, नवम स्थान Jain Education International से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिंडेति वा रायपिंडेति वा पडिसिद्धे । 5 एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिंडं वा रायपिंडं वा, पडिसेहिस्सति । (453) For Private & Personal Use Only 259595955555 5 5 55 5 5 55 5555 5 5 5 5 5 5 55559552 Ninth Sthaan फ्र க फ्र 卐 卐 www.jainelibrary.org

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