Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 536
________________ 5555555555))))))))))))))))))))))))))))))))))))))) 55555555555555555555555555555555555551 卐 १२. दश कारणों से पुरुष अपने आपको ‘अहमंती'- 'मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ' ऐसा अभिमान करता है, ! + जैसे-(१) जाति के मद से। (२) कुल के मद से। (३) बल के मद से। (४) रूप के मद से। (५) तप के मद से। (६) शास्त्रज्ञान के मद से। (७) लाभ साधनों की उपलब्धि के मद से। (८) ऐश्वर्य प्राप्ति के मद 卐 से। (९) 'मेरे पास नागकुमार या सुपर्णकुमार देव दौड़कर आते हैं', इस प्रकार के भाव से। (१०) 'मुझे सामान्य जनों की अपेक्षा विशिष्ट अवधिज्ञान और अवधिदर्शन उत्पन्न हुआ है' इस प्रकार के भाव से। 12. For ten reasons a person takes pride in considering himself to be the best-(1) Jati mad (conceit of maternal lineage), (2) kula mad (conceit of paternal lineage), (3) bal mad (conceit of strength), (4) rupa mad (conceit of appearance or beauty), (5) tapo mad (conceit of austerities), (6) Shrut mad (conceit of scriptural knowledge), (7) laabh y mad (conceit of means of gain), (8) aishvarya mad (conceit of gaining wealth), (9) with the thought that gods including Naag Kumar and Suparna Kumar come rushing on my call, and (10) with the thought that I have acquired higher degree of Avadhi-jnana and avadhi-darshan as compared to others. समाधि-असमाधि-पद SAMADHI-ASAMADHI-PAD (SEGMENT OF EQUANIMITY AND ITS ABSENCE) १३. दसविधा समाधी पण्णत्ता, तं जहा-पाणातिवायवेरमणे, मुसावायवेरमणे, अदिण्णादाणवेरमणे, + मेहुणवेरमणे, परिग्गहवेरमणे, इरियासमिती, भासासमिती, एसणासमिती, आयाण-भंड-मत्तणिक्खेवणासमिती, उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-जल्ल-पारिट्ठावणिया समिती। १४. दसविधा असमाधी पण्णत्ता, तं जहा-पाणातिवाते (मुसावाए, अदिण्णादाणे, मेहुणे), परिग्गहे, इरियाऽसमिती, (भासाऽसमिती, एसणाऽसमिती, आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेणाऽसमिती), ॐ उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-जल्ल-पारिट्ठावणियाऽसमिती। १३. दस कारणों से आत्मा समाधि भाव को प्राप्त होता है-(१) प्राणातिपात-विरमण, ॐ (२) मृषावाद-विरमण, (६) ईयासमिति, (७) भाषासमिति, (८) एषणासमिति, (९) आदाननिक्षेपण + (पात्रनिक्षेपण) समिति, (१०) उच्चार-प्रस्रवण-श्लेष्म-सिंघाण-जल्ल-परिष्ठापना समिति। इन सबके सम्यक् शुद्ध पालन से। १४. दस कारणों से आत्मा असमाधि को प्राप्त होता है-(१) प्राणातिपात-अविरमण, ॐ (२) मृषावाद-अविरमण, (३) अदत्तादान-अविरमण, (४) मैथुन-अविरमण, (५) परिग्रह-अविरमण, 卐 (६) ईर्या-असमिति (गमन की असावधानी), (७) भाषा-असमिति (बोलने की असावधानी), (९) आदान-भाण्ड-अमत्र-निक्षेप की असमिति, (१०) उच्चार-प्रस्रवण-श्लेष्म-सिंघाण-जल्लफ़ परिष्ठापना-असमिति। स्थानांगसूत्र (२) (474) Sthaananga Sutra (2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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