Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 417
________________ 15555555555555555555555555555555555 )) ) )) )) )) )) ))) )) ) תב וב תב תב תנ ת ת ת ת ת ת 10. (b) After committing a misdeed a treacherous person remains 4 seething inside like furnaces meant for melting iron, copper, zinc, lead, silver and gold; sesame-fire, chaff-fire, hay-fire, bush-fire (nalagni) and __ leaf-fire; like different sizes of stoves (for different sizes of pots, such as mundika, bhandik and golika), potter's and brick-maker's kilns; like a jaggery hearth and a blacksmith's hearth. As these fires burn inside the furnaces with increasing temperature and glow, turning red like Kinshuk flower, throwing thousands of cinders, flames and sparks, in the same way a treacherous person remains seething inside after committing a sin for fear and worry of his sins. १०. (ग) जंवि य णं अण्णे केइ वदंति तंपि य णं मायी जाणति अहमेसे अभिसंकिज्जामि अभिसंकिज्जामि। मायी णं मायं कटु अणालोइयपडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तं जहा-णो महिडिएसु (णो महज्जुइएसु णो महाणुभागेसु णो महायसेसु णो महाबलेसु णो महासोक्खेसु) णो दूरंगतिएसु णो चिरद्वितिएसु। से णं तत्थ देवे भवति णो महिड्डिए (णो महज्जुइए णो महाणुभागे णो महायसे णो महाबले णो महासोक्खे णो दूरंगतिए) मओ चिरट्ठितिए। ___जावि य से तत्थ बाहिरभंतरिया परिसा भवति, सावि य णं णो आढाति णो परिजाणाति णो । महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच देवा अणुत्ता चेव __ अन्भुटुंति-मा बहुं देवे ! भासउ-भास। से णं ततो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव माणुस्सए __ भवे जाइं इमाइं कुलाइं भवंति, तं जहा-अंतकुलाणि वा पंतकुलाणि वा तुच्छकुलाणि वा दरिद्दकुलाणि 5 वा भिक्खागकुलाणि वा किवणकुलाणि वा, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाति। से णं तत्थ पुमे में भवति दुरूवे दुवण्णे दुग्गंधे दुरसे दुफासे अणिढे अकंते अप्पिए अमणुण्णे अमणामे हीणस्सरे दीणस्सरे में अणिट्ठस्सरे अकंतस्सरे अप्पियस्सरे अमणुण्णस्सरे अमणामस्सरे अणाएज्जवयणे पच्चायाते। जावि य से सत्थ बाहिरभंतरिया परिसा भवति, सावि य णं णो आढाति णो परिजाणाति णो महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अणुत्ता चेव # अब्भुटुंति -मा बहुं अज्जउत्तो ! भासउ-भासउ। १०. (ग) यदि कोई अन्य पुरुष आपस में बात करते हैं तो मायावी समझता है कि 'ये मेरे विषय है में ही शंका कर रहे हैं !' कोई मायावी माया करके उसकी आलोचना या प्रतिक्रमण किये बिना ही काल-मास में काल करके किसी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होता है, किन्तु वह महाऋद्धि वाले, महाधुति वाले, महा अनुभव विक्रियादि शक्ति से युक्त, महायशस्वी, महाबलशाली, महान् सौख्य वाले, के ))) ))) )) )) ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת )) )) )) 5 hhhh अष्टम स्थान (359) Eighth Sthaan 999 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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