Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 506
________________ 25 55 5 5 555 55555555955 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 555 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 55 5 52 卐 ******************************தமிழ்ழிதி Satyaki-no details are available. (8) Ammad Parivrajak enlightened by a Shravika-The mention of Ammad Parivrajak who was enlightened by Sulasa Shravika is available in Aupapatik Sutra. However, according to the commentator (Vritti) this is some other person. (9) Arya Suparshvaa, initiated in the lineage of Parshva Naath-no details are available. महापद्म- तीर्थंकर - पद MAHAPADMA TIRTHANKAR PAD (SEGMENT OF MAHAPADMA TIRTHANKAR) ६२. (क) एस णं अज्जो ! सेणिए राया भिंभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पा पुढवीए सीमंतए णरए चउरासीतिवाससहस्सद्वितीयंसि णिरयंसि णेरइयत्ताए उव्वज्जिहति । से णं तत्थ णेरइए भविस्सति - काले कालोभासे (गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए ) परमकिहे वण्णं । णं तत्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं (तिउलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं दिव्यं) दुरहियासं । से णं ततो णरयाओ उव्वट्टेत्ता आगमेसाए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्डगिरिपायमूले पुडेसु जणवएसु सतदुवारे णगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुमत्ताए पच्चायाहिति । तए णं सा भद्दा भारिया णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्टमाण य राइंदियाणं वीतिक्कंताणं सुकुमालपाणिपायं अहीण - पडिपुण्ण - पंचिंदिय - सरीरं लक्खण - वंजण - ( गुणोववेयं माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्ण - सुजाय - सव्वंगं - सुंदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं) सुरूवं दारगं पयाहिती | जं यणि चणं से दारए पयाहिती, तं रयणिं च णं सतदुवारे नगरे सम्भंतरबाहिरए भारग्गसो य कुंभग्गसो य पउमवासे य रयणवासे य वासे वासिहिति । तणं तस्स दारयस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वीइक्कंते ( णिवत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते) बारसाहे अयमेयारूवं गोण्णं गुणणिप्फण्णं णामधिज्जं कार्हिति, जम्हा णं अम्हमिमंसि दारगंसि जातंसि समाणंसि सयदुवारे णगरे सब्भिंतरबाहिरए भारग्गसो य कुंभग्गसो य पउमवासे या रयणवासे य वासे वुट्टे, तं होउ णं अम्हमिमस्स दारगस्स णामधिज्जं महापउमे - महापउमे । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधिज्जं कार्हिति महापउमेत्ति । ६२. (क) आर्यो ! श्रेणिक राजा भिम्भसार (बिम्बसार) मरण काल में मृत्यु प्राप्त कर इसी रत्नप्रभा पृथ्वी के सीमन्तक नरक में चौरासी हजार वर्ष की स्थिति वाले भाग में नारक रूप से उत्पन्न होगा। उसका वर्ण काला, काली आभावाला, अति लोमहर्षक भयंकर उद्वेग जनक और परम कृष्ण होगा । वह वहाँ ज्वलन्त मन, वचन और काय तीनों की कसौटी करने वाली, अत्यन्त तीव्र, प्रगाढ़, कटुक, कर्कश, प्रचण्ड, दुःखकारी दुर्ग की भाँति अलंघ्य, ज्वलन्त, असह्य वेदना अनुभव करेगा। स्थानांगसूत्र (२) (444) Jain Education International Sthaananga Sutra (2) 4 תת ב ב ב Y Y ת ת ה 4 தததத தததக*****மிததமித*************ME For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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