Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 305
________________ 15555) ))) ))) ) ))))))))) ))) i (५) जरक, (६) प्रजरक। ७१. चौथी पंकप्रभा पृथ्वी (दक्षिण भाग) में छह अपक्रान्त महानरक हैं- (१) आर, (२) बार, (३) मार, (४) रोर, (५) रोरुक, (६) खाडखड। 70. In Jambu Dveep to the south of Mandar mountain in this Ratnaprabha Prithvi (the first hell) there are six apakrant (worse of the worst) mahanarak (worst hells)—(1) Lola, (2) Lolup, (3) Uddagdha, (4) Nirdagdha, (5) Jarak and (6) Prajarak. 71. In the fourth (hell) Pankaprabha Prithvi (in the southern part) there are six apakrant i mahanaraks-(1) Aar, (2) Baar, (3) Maar, (4) Rora, (5) Roruk and 41 (6) Khaatkhad. ___ विवेचन-सातों नरकों में दो प्रकार के नरकावास हैं-(१) आवलिका प्रविष्ट और (२) पुष्पावकीर्ण। आवलिका के तीन आकार हैं-गोल, त्रिकोण और चतुष्कोण। पुष्पावकीर्ण अनेक प्रकार के होते हैं। अपक्रान्त महानरकावास आवलिका प्रविष्ट हैं तथा ये सबसे अधिक भयावह होते हैं। (हिन्दी टीका भाग २ पृष्ठ ३०६) Elaboration In all the seven hells there are two types of infernal abodes-Avalika pravisht and Pushpavakeern. Avalika has three shapes-circular, triangular and quadrangular. Pushpavakeern has numerous types. The Apakrant Mahanarak abodes are Avalika pravisht and most horrifying. (Hindi Tika, part-2, p. 306) विमानप्रस्तट-पद VIMAAN-PRASTAT-PAD. (SEGMENT OF GAP BETWEEN CELESTIAL VEHICLES) ७२. बंभलोगे णं कप्पे छ विमाण पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा-अरए, विरए, णीरए, णिम्मले, वितिमिरे, विसुद्धे। ७२. ब्रह्मलोक कल्प में छह विमान-प्रस्तट (भवनों के मध्य का अन्तराल भाग) हैं-(१) अरजस्, (२) विरजस्, (३) नीरजस्, (४) निर्मल, (५) वितिमिर, (६) विशुद्ध। 72. In Brahmalok Kalp there are six Vimaan-prastats (intervening space or gap between two divine abodes)-(1) Arjas, (2) Virajas, (3) Neerajas, (4) Nirmal, (5) Vitimir and (6) Vishuddha. नक्षत्र-पद NAKSHATRA-PAD (SEGMENT OF CONSTELLATIONS) ७३. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता पुबंभागा समखेत्ता तीसतिमुहुत्ता के पण्णत्ता, तं जहा-पुबाभद्दवया, कत्तिया, महा, पुब्बफग्गुणे, मूलो, पुब्बासाढा। ७४. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता णत्तंभागा अवड्डक्खत्ता पण्णरसमुहुत्ता, तं जहा-सभिसया, + भरणी, अद्दा, अस्सेसा, साती, जेट्ठा। षष्ठ स्थान (251) Sixth Sthaan Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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