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५९. इसी प्रकार पुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध में सात वर्ष, सात वर्षधर पर्वत और सात महानदियाँ हैं । अर्थात् धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध के समान ही हैं । अन्तर केवल इतना ही है कि पूर्वाभिमुखी नदियाँ पुष्करोदसमुद्र में और पश्चिमाभिमुखी नदियाँ कालोदसमुद्र में मिलती हैं । ६०. इसी प्रकार अर्धपुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्ध में सात वर्ष, सात वर्षधर पर्वत और सात महानदियाँ धातकीषण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध के समान ही हैं। अन्तर केवल इतना है कि पूर्वाभिमुखी नदियाँ कालोदसमुद्र में और पश्चिमाभिमुखी नदियाँ पुष्करोदसमुद्र में जाकर मिलती हैं।
कुलकर- पद KULAKAR-PAD (SEGMENT OF CLAN FOUNDERS)
६१. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तीताए उस्सप्पिणीए सत्त कुलगरा हुत्था, तं जहामित्तदामे सुदामे य, सुपासे य सयंपभे ।
विमलघोसे सुघोसे य, महाघोसे य सत्तमे ॥१ ॥ (संग्रहणी - गाथा )
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59. In the same way in the eastern half of Pushkaravar continent there are seven varsh (areas), seven Varsh-dhar parvats (mountains) and seven mahanadis (great rivers). This means that they are same as those in the eastern half of Dhatakikhand continent. The only difference is that the east-flowing rivers fall in Pushkarod Samudra and the west flowing rivers fall in Kalod Samudra. 60. In the same way in the western half of Pushkaravar continent there are seven varsh (areas), seven Varsh-dhar parvats (mountains) and seven mahanadis (great rivers) like those in the western half of Dhatakikhand continent. The only difference is that the east-flowing rivers fall in Kalod Samudra and the west flowing rivers fall in Pushkarod Samudra.
६१. जम्बूद्वीप द्वीप में भारतवर्ष में अतीत उत्सर्पिणी काल में सात कुलकर हुए - (१) मित्रदामा, (२) सुदामा, (३) सुपार्श्व, (४) स्वयंप्रभ, (५) विमलघोष, (६) सुघोष, (७) महाघोष ।
61. In Jambu Dveep in Bharat-varsh there have been seven kulakars (clan founders or society makers) during the past Utsarpini ( progressive cycle of time ) — (1) Mitradama, (2) Sudama, (3) Suparshva, (4) Svayamprabh, (5) Vimalaghosh, (6) Sughosh and (7) Mahaghosh
६२. जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा हुत्था
६३. एएसि णं सत्तण्हं कुलगराणं सत्त भारियाओ हुत्था तं जहा
सप्तम स्थान
पढमित्थ विमलवाहण, चक्खुम जसमं चउत्थमभिचंदे । ततो य पसेणइए, मरुदेवे चेव णाभी य ॥ १ ॥
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