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5555555555555555555555555555555555555 ॐ सूत्र में आसनों के अतिरिक्त सूर्य की आतापना लेना, सर्दी में वस्त्र विहीन रहना, शरीर को नहीं । म खुजलाना, विभूषा नहीं करना यह सभी कायक्लेश के प्रकार बताएँ हैं। ॐ प्रतिमास्थायी का अर्थ है-दशाश्रुतस्कन्ध में वर्णित भिक्षु प्रतिमाओं की विविध मुद्राओं में स्थित ! 卐 रहना। (७) वीरासनिक-वीरासन की व्याख्या भिन्न-भिन्न प्रकार की है। बद्धपद्मासन की या पद्मासन की
मुद्रा में बैठना। अभयदेवसूरि के अनुसार सिंहासन पर बैठकर उसे निकाल देने पर जो मुद्रा बनती है, वह वीरासन है। इससे धैर्य, कष्ट, सहिष्णुता तथा शरीर का सन्तुलन बनाये रखने की क्षमता बढ़ती है। ___इसी सूत्र के पाँचवें स्थान सूत्र ५० पर निषद्या के पाँच आसन बताये हैं। अतः तदनुसार निषद्या का ' + अर्थ है बैठकर किये जाने वाले आसन।
Elaboration-Kayaklesh is the fifth category of external austerities. In y fact it is not aimed at tormenting the body but at eliminating the natural fondness for one's own body by ignoring discomforts of adopting various tough postures and also enduring afflictions. This enhances the capacity of forbearance as well. These seven kinds are related to body postures. In
Aupapatik Sutra other kinds of kayaklesh are mentioned-to endure 卐 heat of the sun, to remain unclad in winter, not to scratch body when y ___itching, and avoid embellishing body.
Pratimasthayi means to adopt different postures related to Bhikshu pratimas (special austerities) mentioned in Dashashrutskandh (7). 41 Virasanik—there are numerous descriptions of this posture. To sit in baddha padmasan or padmasan (variations of lotus pose). Abhayadev Suri has described it as 'posture resembling sitting on a chair without a chair'. This posture enhances the capacity of patience, tolerance and physical balance.
In aphorism 50 of the fifth Sthaan of this book five sitting postures have been included in nishadya. Thus nishadya broadly means sitting postures. क्षेत्र, पर्वत, नदी-पद KSHETRA, PARVAT, NADI-PAD
(SEGMENT OF AREAS, MOUNTAINS, RIVERS) ५०. जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासा पण्णत्ता, तं जहा-भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, हरिवासे, रम्मगवासे, महाविदेहे। ५१. जंबूद्दीवे दीवे सत्त वासहरपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे, णीलवंते, रुप्पी, सिहरी, मंदरे।
५०. जम्बूद्वीप द्वीप में सात वर्ष (क्षेत्र) हैं-(१) भरत, (२) ऐरवत, (३) हैमवत, (४) हैरण्यवत, 9 (५) हरिवर्ष, (६) रम्यकवर्ष, (७) महाविदेह। ५१. जम्बूद्वीप द्वीप में सात वर्षधर पर्वत हैं
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| स्थानांगसूत्र (२)
(306)
Sthaananga Sutra (2)
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