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revise and repeat what has been learnt. (4) Anupreksha-to ponder over the meaning profoundly. (5) Dharmakatha-to discuss religion.
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प्रत्याख्यान-पद PRATYAKHYAN-PAD (SEGMENT OF ABSTAINMENT)
२२१. पंचविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा-सद्दहणसुद्धे, विणयसुद्धे, अणुभासणासुद्धे, अणुपालणासुद्धे, भावसुद्धे। __२२१. प्रत्याख्यान पाँच प्रकार का है-(१) श्रद्धानशुद्ध-श्रद्धापूर्वक किया गया निर्दोष त्याग। (२) विनयशुद्ध-देव-गुरु की विनयपूर्वक किया गया निर्दोष त्याग। (३) अनुभाषणाशुद्ध-गुरु द्वारा बोले गये 'वोसिरे' आदि पदों को दोहराते हुए प्रत्याख्यान पाठ बोलना। (४) अनुपालनाशुद्ध-विकट परिस्थिति में भी दृढ़तापूर्वक प्रत्याख्यान का निर्दोष पालन करना। (५) भावशुद्ध-राग-द्वेष से रहित होकर शुद्ध भाव से प्रत्याख्यान का पालन करना।
221. Pratyakhyan (abstainment) is of five kinds—(1) Shraddhan shuddha-faultless abstainment done with faith, (2) Vinaya shuddhafaultless abstainment done with modesty towards deities and gurus, (3) Anubhashana shuddha-to repeat the verses related to abstainment
(vosire) uttered by the guru, (4) Anupalana shuddha-faultless 4 i abstainment observed with resolve even in adverse conditions and
(5) Bhaava shuddha-faultless abstainment done with purity of mind i ! being free of attachment and aversion. प्रतिक्रमण-पद PRATIKRAMAN-PAD (SEGMENT OF CRITICAL REVIEW)
२२२. पंचविहे पडिक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा-आसवदारपडिक्कमणे, मिच्छत्तपडिक्कमणे, कसायपडिक्कमणे, जोगपडिक्कमणे, भावपडिक्कमणे। ____२२२. प्रतिक्रमण पाँच प्रकार का है-(१) आस्रवद्वार-प्रतिक्रमण-प्राणातिपातादि पाँच आस्रवों से निवृत्त होना। (२) मिथ्यात्व-प्रतिक्रमण-मिथ्यात्व को त्यागकर सम्यक्त्व में लौटना। (३) कषाय-प्रतिक्रमण-कषायों से निवृत्त होना। (४) योग-प्रतिक्रमण-मन, वचन, काय की अशुभ प्रवृत्ति से निवृत्त होना। (५) भाव-प्रतिक्रमण-मिथ्यात्व आदि का कृत, कारित, अनुमोदना से त्यागकर शुद्धभाव से सम्यक्त्व में स्थिर रहना।
222. Pratikraman (critical review) is of five kinds-(1) Asravadvar 4 pratikraman-to be rid of five channels of karmic inflow, such as killing ; beings. (2) Mithyatva pratikraman-to abandon unrighteousness and regain righteousness. (3) Kashaya pratikraman-to be rid of passions. (4) Yoga pratikraman-to be rid of evil indulgence through mind, speech and body. (5) Bhaava pratikraman-to stabilize oneself in righteousness with spiritual purity gained by renouncing all vices through three means (do, cause to do and affirm doing).
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पंचम स्थान : तृतीय उद्देशक
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Fifth Sthaan : Third Lesson
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