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# सूरि ने लिखा है कि श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा मनोज्ञ शब्द सुनने से जो सुख होता है, वह तो श्रोत्रेन्द्रिय-जनित 卐 है, किन्तु इष्ट-चिन्तन से जो सुख मिलता है, वह नोइन्द्रिय-जनित है। चिन्तन, विचार आदि श्रुतज्ञान + का विषय है। (वृत्ति, भाग २ पृष्ठ ६०९)
Elaboration–The subjects of five sense organs are definite and known to all but that of mind is indefinite. Mind contemplates on everything that is experienced by sense organs and thus everything is its subject. Abhayadev Suri, the commentator (Tika), writes that the pleasure derived by listening to a sweet sound is provided by ears but the pleasure . derived by beneficial thoughts is provided by mind. Contemplation and reflection are subjects of shrut jnana (scriptural knowledge. (Vritti, part-2, p. 609) संवर असंवर-पद SAMVAR-ASAMVAR-PAD
(SEGMENT OF BLOCKAGE AND NON-BLOCKAGE OF INFLOW OF KARMAS) १५. छबिहे संवरे पण्णत्ते, तं जहा-सोतिंदियसंवरे, [चक्खिंदियसंवरे, घाणिंदियसंवरे, जिभिंदियसंवरे ] फासिंदियसंवरे, णोइंदियसंवरे। १६. छबिहे असंवरे पण्णत्ते, तं जहाॐ सोतिंदियअसंवरे, [ चक्खिंदियअसंवरे, घाणिंदियअसंवरे ], जिभिंदियअसंवरे), फासिंदियअसंवरे,
णोइंदियअसंवरे। 卐 १५. संवर छह प्रकार का है, जैसे-(१) श्रोत्रेन्द्रिय-संवर, [(२) चक्षुरिन्द्रिय-संवर,
(३) घ्राणेन्द्रिय-संवर, (४) रसनेन्द्रिय-संवर], (५) स्पर्शनेन्द्रिय-संवर, (६) नोइन्द्रिय (मन) संवर। ॐ १६. असंवर छह प्रकार का है-(१) श्रोत्रेन्द्रिय-असंवर, (२) चक्षुरिन्द्रिय-असंवर, (३) घ्राणेन्द्रिय-असंवर, (४) रसनेन्द्रिय-असंवर, (५) स्पर्शनेन्द्रिय-असंवर, (६) नोइन्द्रिय-असंवर।
15. Samvar (blockage of inflow of karmas or abstaining from indulgence in subjects of sense organs) is of six kinds-(1) shrotendriya samvar, (2) chakshurindriya samvar, (3) ghranendriya samvar, (4) rasanendriya samvar, (5) sparshendriya samvar and (6) noindriya samvar. 16. Asamvar (inflow of karmas or indulgence in subjects of sense
organs) is of six kinds-(1) shrotendriya asamvar, (2) chakshurindriya 卐 asamvar, (3) ghranendriya asamvar, (4) rasanendriya asamvar,
(5) sparshendriya asamvar and (6) noindriya asamvar. सात-असात पद SAAT-ASAAT-PAD (SEGMENT OF HAPPINESS AND SORROW)
१७. छबिहे साते पण्णत्ते, तं जहा-सोतिंदियसाते, [ चक्खिंदियसाते, घाणिंदियसाते, है जिभिंदियसाते, फासिंदियसाते ], णोइंदियसाते। १८. छबिहे असाते पण्णत्ते, तं जहा। सोतिंदियअसाते, जाव णोइंदियअसाते।
स्थानांगसूत्र (२)
(226)
Sthaananga Sutra (2)
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