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भिक्षाभिग्रह - पद BHIKSHABHIGRAHA-PAD
(SEGMENT OF SPECIAL RESOLVES FOR ALMS COLLECTION) ३४. पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसत्थाई णिच्चमन्भणुण्णाताई भवंति, तं जहा - खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे । ३५. पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं जाव (समणाणं णिग्गंथाणं 5 णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तियाइं णिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसत्थाइं णिच्चं ) अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहा - सच्चे संजमे, तवे, चियाए, बंचेरवासी ।
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३४. श्रमण भगवान्ं महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच स्थान सदा वर्णित किये हैं, कीर्त्तित किये 5 हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं और अभ्यनुज्ञात किये हैं- ( १ ) क्षान्ति (क्षमा), (२) मुक्ति (निर्लोभता), फ्र (३) आर्जव (सरलता), (४) मार्दव (मृदुता) और (५) लाघव (लघुता) । ३५. श्रमण भगवान् महावीर ने फ श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पाँच स्थान सदा वर्णित किये हैं, कीर्त्तित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं 5 और अभ्यनुज्ञात किये हैं- (१) सत्य, (२) संयम, (३) तप, (४) त्याग और (५) ब्रह्मचर्य ।
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34. For Shraman Nirgranths (Jain ascetics) Shraman Bhagavan 5 Mahavir has described (varnit), glorified (hirtit), explained (vyakta), 5 praised (prashansit), and commanded (abhyanujnat) five sthaans (virtues ) — (1) kshanti (forgiveness ), ( 2 ) mukti (freedom from greed), फ ( 3 ) arjava (simplicity), (4) mardava (gentleness) and (5) laghava फ्र (humbleness). 35. For Shraman Nirgranths (Jain ascetics) Shraman Bhagavan Mahavir has described (varnit), glorified ( kirtit), explained 5 (vyakta), praised (prashansit ), and commanded ( abhyanujnat) five 卐 sthaans (virtues)-(1) satya (truth), (2) samyam (discipline), (3) tap (austerities), (4) tyag (detachment) and (5) brahmacharya (celibacy).
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विवेचन- इन दो सूत्रों में १० श्रमण धर्म का कथन है । वर्णित आदि शब्दों के अर्थ- वर्णित - फल की दृष्टि से वर्णन किया है। कीर्तित नाम रूप से उल्लेख किया है। व्यक्त-स्वरूप का कथन किया है। प्रशंसित - 5 प्रशंसा की है । अभ्यनुज्ञात- पालन करने का निर्देश दिया है। (वृत्ति, भाग २ पृष्ठ ५११ )
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Elaboration These two aphorisms state the ten virtues included in ascetic conduct. The words laying emphasis on these are explained here. Varnit-described with reference to the fruits thereof. Kirtit-included in the list of the glorious. Vyakta-explained the meaning and form. Prashansitpraised. Abhyanujnat-commanded to observe them. (Vritti part-2, p. 511 )
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३६. पंच टाणाई समणेणं जाव ( भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई, 5 णिच्चं कित्तिताई, णिच्चं बुइयाई, णिच्चं पसत्थाई, णिच्चं ) अब्भणुण्णाताई भवंति तं जहा- 5 उक्खित्तचर, णिक्खित्तचरए, अंतचरए, पंतचरए, लूहचरए ।
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पंचम स्थान : प्रथम उद्देशक
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Fifth Sthaan: First Lesson
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