________________
a5555555555555555555555555555听听听听听听听听听听听听听听听听听F $55
855555555555555555555555555555555558 ॐ १८७. कुशील निर्ग्रन्थ पाँच प्रकार के होते हैं-(१) ज्ञानकुशील-काल, विनय, उपधान आदि म
ज्ञानाचार को नहीं पालने वाला। तथा क्रोधादि वश ज्ञान पढ़ने व विद्याओं का प्रयोग करने वाला। (२) दर्शनकुशील-निष्कांक्षित आदि दर्शनाचार को नहीं पालने वाला। (३) चारित्रकुशील-कौतुक, भूतिकर्म, निमित्त, मंत्र आदि का प्रयोग करने वाला। (४) लिंगकुशील-साधुवेष से आजीविका करने के
वाला। (५) यथासूक्ष्मकुशील-दूसरे के द्वारा अपने को तपस्वी, ज्ञानी कहे जाने पर हर्षित होने वाला। फ़ 187. Kushila nirgranth are of five kinds-(1) Jnana kushila-who 5
does not follow the code of conduct related to knowledge, such as kaal (time), vinaya (modesty) and upadhan (studies). Also one who studies and uses special powers out of anger. (2) Darshan kushila-who does not follow the code of conduct related to perception/faith, such as nishkankshit (undesired). (3) Chaaritra kushila-who indulges in prohibited invocations and rituals like kautuk (clown), bhutikarma (festive rites), nimitta (augury), mantra etc. (4) Linga kushila--who earns living by dressing as an ascetic. (5) Yathasukshma kushila—who is
pleased when others call him a great hermit or scholar. म १८८. णियंठे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-पढमसमयणियंठे, अपढमसमयणियंठे, चरिमसमयणियंठे, अचरिमसमयणियटे, अहासुहमणियठे णामं पंचमे।
१८८. निर्ग्रन्थ, निर्ग्रन्थ पाँच प्रकार के होते हैं-(१) प्रथमसमनिर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थ दशा को प्राप्त प्रथमसमयवर्ती निर्ग्रन्थ। (२) अप्रथमसमयनिर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थ दशा को प्राप्त द्वितीयादिसमयवर्ती निर्ग्रन्थ। (३) चरमसमयवर्तीनिर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थ दशा के अन्तिम समय में वर्तमान निर्ग्रन्थ।
(४) अचरमसमयवर्तीनिर्ग्रन्थ-अन्तिम समय के अतिरिक्त शेष समय में वर्तमान निर्ग्रन्थ। म (५) यथासूक्ष्मनिर्ग्रन्थ-प्रथम या चरम-समय आदि की विवक्षा न करके सभी समयों में वर्तमान निर्ग्रन्थ। ॐ
188. Nirgranth nirgranth are of five kinds—(1) Pratham samaya i Nirgranth-nirgranth at the first moment of attaining the level of
Nirgranth. (2) Apratham samaya Nirgranth-nirgranth at the second and later moments of attaining the level of Nirgranth. (3) Charam samaya Nirgranth-nirgranth at the last moment of being at the level of Nirgranth. (4) Acharama samaya Nirgranth-nirgranth at the last but one and earlier moments of being at the level of Nirgranth.
(5) Yathasukshma Nirgranth-nirgranth at the level of Nirgranth 5 unclassified by moments in that state. म १८९. सिणाते पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा-अच्छवी, असबले, अकम्मंसे, संसुद्धणाणदंसणधरे ॐ अरहा जिणे केवली, अपरिस्साई। | स्थानांगसूत्र (२)
Sthaananga Sutra (2)
a$5555555555555听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
(190)
8555555
5555555555)
)))
)
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org