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தகத்தகதிமிததமிதத*தமிமிதத*தமிழதழதமி*******தின
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eyes or colliding with something. (2) Prapatan-janit-caused by falling while walking carelessly. (3) Stambhan-janit-caused due to numbness in limbs or inability to pass urine or stool. (4) Shlesh-janit-caused by stiffness in joints due to disturbed body humours.
कर्म-पद KARMA-PAD (SEGMENT OF KARMAS)
६०२. चउव्विहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा - सुभे णाममेगे सुभे, सुभे णाममेगे असुभे, असुभे णामगे सुभे, असुभे णाममेगे असुभे ।
६०२. कर्म चार प्रकार का कहा है- ( १ ) शुभ और शुभ । (२) शुभ और अशुभ । (३) अशुभ और शुभ । (४) अशुभ और अशुभ।
602. Karmas are of four kinds-(1) good and good, (2) good and bad, (3) bad and good, and (4) bad and bad.
विवेचन - कर्मों के मूल भेद आठ हैं, उनमें चार घातिकर्म तो अशुभ या पापरूप ही कहे गये हैं। शेष चार अघातिकर्मों के दो विभाग हैं। उनमें सातावेदनीय, शुभ आयु, उच्च गोत्र और पंचेन्द्रिय जाति, उत्तम संस्थान, स्थिर, सुभग, यशःकीर्ति आदि नाम कर्म की ६८ प्रकृतियाँ पुण्य रूप और शेष पापरूप कही हैं।
सूत्र में जो चार भंग कहे गये हैं, उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
(१) कोई पुण्यकर्म वर्तमान में भी शुभ फल देता है और शुभानुबन्धी होने से आगे भी सुख देने वाला होता है। जब पुण्य भोग में आसक्ति नहीं होती तो मूढ़ता उत्पन्न नहीं होती । पुण्यानुबंधी पुण्य | जैसे भरत चक्रवर्ती आदि का पुण्यकर्म ।
(२) कोई पुण्यकर्म वर्तमान में तो शुभ फल देता है, किन्तु पापानुबन्धी होने से आगे दुःख देने वाला होता है। पापानुबन्धी पुण्य । जो पुण्य आसक्त भाव से भोगा जाता है, वह मूढ बना देता है । जैसे ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती आदि का पुण्यकर्म । जैसे कहा है
पुण्य से वैभव होता है, वैभव से मद, मद से मति - मोह, मति मोह से पाप । पाप मुझे इष्ट नहीं हैं। इसलिए ऐसा पुण्य भी मुझे इष्ट नहीं है।
पुण्णेण होइ विहवो, विहवेण मओ, मएण मई मोहो ।
मई मोहेण य पावंता पुण्णं अम्ह मा होउ ।
(३) कोई पापकर्म वर्तमान में तो दुःख देता है, किन्तु आगे सुखानुबन्धी होता है । जो अशुभ कर्म तीव्र मोह से अर्जित नहीं होते, वे भोगते समय मूढता उत्पन्न नहीं करते, वे शुभ कर्म के निमित्त बन जाते हैं । जैसे दुःख से संतप्त व्यक्ति शुभ की ओर प्रवृत्त होता है। पुण्यानुबन्धी पाप ।
(४) कोई पापकर्म वर्तमान में भी दुःख देता है और पापानुबन्धी होने से आगे भी दुःख देता है । जैसे - मछली मारने वाले धीवरादि का पापकर्म । ( पापानुबन्धी पाप)
5 चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
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Fourth Sthaan: Fourth Lesson
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