Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विषय
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पृष्ठा ७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण, चतुर्थ सूत्र और छाया ।
४३५ ८ शीतस्पर्शसे कम्पितशरीर मुनिको देख कर यदि गृहपति
पूछे कि ' हे आयुष्मन् ! क्या आपका शरीर कामजनित पीडासे कंपित हो रहा है ? ' तो मुनि उससे कहे-' हे गाथापति ! मेरा शरीर कामविकारसे नहीं कँप रहा है, किन्तु शीतकी बाधाको मैं नहीं सह पा रहा हूँ इसलिये कँप रहा है।' इस पर यदि गृहपति कहे कि ' हे आयुष्मन् ! तो आप अग्निसेवन क्यों नहीं करते? ' इस पर वह साघु कहे कि 'हे गाथापति! मुझे अग्निको प्रज्वलित करना या उसका सेवन करना नहीं कल्पता।' इस प्रकार कहने पर यदि वह गृहपति या अन्य गृहस्थ आग जला कर उस मुनिके शरीरको तापित करे तो वह मुनि गृहस्थको समझा कर अग्निसेवनसे दूर ही रहे।
४३५-४३९ ॥ इति तृतीय उद्देश ॥
॥ अथ चतुर्थ उद्देश ॥ १ चतुर्थ उद्देशका तृतीय उद्देशके साथ सम्बन्धमतिपादन,
प्रथम सूत्रका अवतरण, प्रथम सूत्र और छाया । ४४०-४४१ २ मुनिको तीन वस्त्र और चौथा पात्र का रखना कल्पता है।
इस प्रकारके साधुको यह भावना नहीं होती है कि चौथे वस्त्रकी याचना करूँगा। साधु एषणीय वस्त्रकी याचना करते हैं, जैसा वस्त्र मिल जाता है उसीको धारण करते हैं, वस्त्रोंको धोते नहीं हैं और रंगते ही हैं। साधु धौतरक्त यत्रको धारण नहीं करते हैं। वे कभी भी वस्त्रोंको छिपाते नहीं; क्यों कि उनका वस्त्र जीर्ण और मलिन होनेके कारण
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩