________________
अलबेली आम्रपाली २६
मगधेश्वरने मात्र इतना ही कहा-"पुत्र, सुखी रहो, बलवान और धृतिवान
बनो।"
राजकुमार ने मां से कहा-"मां एक छोटी-सी शिकायत है।" "बोलो, क्या हुआ ?" "कल भांडागारिक ने मेरा अपमान कर डाला।" "कैसे? क्यों?" महाराज ने पूछा।
"कल मैं भंडारगृह में एक हजार स्वर्ण मुद्राएं लेने गया था। भांडागारिक ने देने से इन्कार कर दिया।"
"मनाही क्यों की?" रानी ने पूछा।
भांडागारिक ने कहा-"प्रतिमास आपको जो स्वर्ण मुद्राएं दी जानी थीं, वे आपको दी जा चुकी हैं । अब और अधिक मुद्राएं मैं नहीं दे सकता।" ___ महाराज ने तत्काल कहा--"वत्स ! यह अपमान नहीं, व्यवस्था है । भांडागारिक स्वतंत्र नहीं होता। वह नियमों का अतिक्रमण नहीं कर सकता। किन्तु तुझे इस प्रकार भांडागारिक से मांगने नहीं जाना चाहिए था। कोई ऐसी बावश्यकता आ जाए तो तू अपनी मां से मांग लिया कर।"
राजकुमार मौन रहा और मां की ओर देखने लगा। माता ने अपनी मुख्य परिचारिका से कहा-"हले ! तू कुमार के साथ जा और मेरे निजी भंडार से इसे एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दिला दे।"
राजकुमार नमस्कार कर मुख्य परिचारिका के साथ चला गया।
महाराज ने कहा-"प्रिये ! राजकुमार को इस प्रकार मुद्राएं देने से पहले तुझे यह जान लेना चाहिए कि वह किस प्रयोजन से मुद्राएं मांग रहा है ?"
"स्वामिन् ! यह आप जैसा ही उदार है। विशेषतः यह दान देने में ही धन का उपयोग करता है।" मां ने पुत्र की तारीफ की।
किन्तु प्रसेनजित तो समझता ही था की राजकुमार तो यौवन के प्रारंभ से ही बुरे मित्रों की संगति में फंस गया था। शराब, सुंदरी और जुए में वह प्रतिमास हजारों मुद्राएं खर्च करता था। किन्तु रानी अपने पुत्र का यह भयंकर दोष जानती हुई भी नहीं जान रही थी।
जो माता-पिता अपनी संतान के प्रति उपेक्षावृत्ति रखते हैं और अति लाडप्यार का विषपान कराते हैं, उन माता-पिताओं को भयंकर पश्चात्ताप करना पड़ता है। और उन्हें अपनी ही संतानों की यातनाओं को सहना होता है । और उस समय उनका हृदय विदीर्ण होकर खंड-खंड हो जाता है।
रानी ने कहा- "स्वामिन् ! आप अपने उपाय की क्रियान्विति कैसे करेंगे?" "कुछ तरकीब निकालनी होगी । मेरे सामने समस्या यह है कि इस प्रश्न को