________________
अलबेली आम्रपाली
एकाकी प्रिय कन्या के लिए राक्षसराज ने अपनी इच्छानुसार अनेक प्रयोग किये । राक्षसों के पास जो नानाविध वाद्य थे वे भी बजाकर देखे । किन्तु प्रियंबा की नींद में कोई अन्तर नहीं आया ।
इस जटिल परिस्थिति में आगन्तुक को देख राक्षसराज के मन में कुछ आशा जागी थी और इसलिए उसने वीणा की शक्ति का परीक्षण करने की बात सोची ।
५७
बिंबिसार राग के प्रभाव को जानता था। एक महान् गुरु के पास रहकर उसने अपूर्व सिद्धि प्राप्त की थी। इसी श्रद्धा के आधार पर उसने शंबुक की बात मानकर कन्या के उपचार की स्वीकृति दी थी ।
प्रातःकाल हुआ ।
बिंबिसार ने प्रातः कार्य से निवृत्त होकर अपनी महाबिंब वीणा को स्वरबद्ध कर थाम लिया था ।
धनंजय बोला -- "महाराज ! आपने भारी जोखिम का कार्य स्वीकार किया
है ।”
"
" जोखिम ?"
"हां, महाराज ! यदि राक्षसराज की कन्या की निद्रा भंग न हो सकी तो वह सबकी बलि दे देगा ।"
"तेरी बात सही है, किन्तु मुझे अपनी गुरुशक्ति पर पूरी श्रद्धा है । गुरुदेव ने एक बार मुझे राक्षसों की अतिप्रिय राग के विषय में समझाया था । वे कहते, इस राग की आराधना नहीं करनी चाहिए। कोई व्यक्ति यदि कुम्भकर्णी नींद की स्थिति में हो या अकारण मूच्छित हो जाए तब इस राग की आराधना करनी चाहिए । इस राग का नाम है 'महाघोष' । इस राग की उत्पत्ति के विषय में यह किंवदन्ती है - प्राचीनकाल में महात्मा शुक्राचार्य ने भगवान शंकर की आराधना कर इस राग का निर्माण किया था । इस राग का स्वरान्दोलन इतना भयंकर होता है कि वह मनुष्य के ज्ञानतन्तुओं पर सीधा प्रहार करता है, उत्तेजित करता है । मुझे विश्वास है कि गुरुकृपा से महाघोष की आराधना अवश्य सफल होगी ।" इस प्रकार दोनों बातें कर रहे थे। तभी राक्षसराज के दो सेवक उनको बुलाने आये ।
तत्काल हाथ में वीणा लेकर बिंबिसार खड़ा हुआ और साथ ही साथ धनंजय भी उठा ।
वे अनेक छोटे-बड़े कक्षों को पार करते हुए राक्षसराज के अन्तःपुर के द्वार के निकट आये ।
साथ में आये हुए सेवक दोनों ही बाहर खड़े रह गये । भीतर से दो तरुण दासियां बाहर आकर उनको अन्दर ले गयीं ।