Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

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Page 319
________________ ३१० अलवेली आम्रपाली "देवी आम्रपाली को लोटे चार दिन हुए हैं। आपके आगमन के समाचार सुनकर माविका बहुत प्रसन्न हुई है ।" धनंजय ने कहा । "देवी...?" "मैं केवल माविका से ही मिला था माध्विका ने आपका पत्र देवी को दे दिया था' पढ़कर वे चितित हो गयीं । परन्तु ।” "क्या...?" माविका ने कहा कि देवी के हृदय में अपने प्रियतम के प्रति वही प्रेम है । किन्तु नारी के हृदय में छुपे अभिमान के कारण उन्होंने आपको कभी संदेश नहीं भेजा । वे मन-ही-मन जलती हैं। मन की वेदना को शांत करने के लिए ही देवी नृत्य, संगीत में रस ले रही हैं राजकार्य में भी सक्रिय भाग लेती हैं और "बोल, बोल... .." "क्या कहूं महाराज ! माध्विका कह रही थी कि देवी आपको भूलने के अथक प्रयास कर रही हैं और इसलिए मैरेय का पान भी करती हैं । " बिंबिसार ने मन-ही-मन कहा - 'अभिमानिनी प्रिया ! फिर पूछा" धनंजय ! माविका ने और क्या कहा ?" "आज सायं देवी ऋतुस्नाता होंगी आज किसी से नहीं मिलेंगी." किन्तु कल आप विदेह देश के ज्योतिषी बनकर आएं माध्विका भेंट करा देगी ।" "नहीं, हमें सायंकाल ही जाना है. यहां आने के बाद मैं उससे मिलने की प्रतीक्षा में एक क्षण भी विलम्ब करना नहीं चाहता ।" कहकर बिंबिसार खड़ा हुआ । "महाराज ! माविका ने कल आने के लिए ही विशेष बल दिया है. देवी आज किसी से नहीं मिलेंगी." मिलने के लिए आने वालों से भी वह चार दिनों से नहीं मिल रही हैं ।" "अरे ! हम अपना असली परिचय देकर जाएं तो ! आज ही माध्विका जाकर देवी से कहेगी कि आपके जयकीर्ति आए हैं ।" " जैसी आपकी इच्छा ।" अन्यमनस्कता से धनंजय बोला । सायंकाल दोनों सप्तभूमि प्रासाद में गए प्रवेश में कोई कठिनाई नहीं आई " किन्तु निचले भाग के मुख्य प्रबन्धक ने इतना सा कहा - "महाराज ! देवी को आशीर्वाद देने का समय प्रातःकाल होता है आपको दान-दक्षिणा भी प्रातःकाल ही मिलेगी ।" धनंजय बोला - "देवी की आज्ञा से ही हम अभी आए हैं । आप माविका बहन को बुलाएं। वे हमें पहचानती हैं ।" 1 "ओह ! आज मध्याह्न में भी आप ही आए थे । क्यों ?" "हां, और हमें अभी आने के लिए कहा था ।" धनंजय ने कहा ।

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