Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

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Page 331
________________ ३२२ अलबेली आम्रपाली परन्तु वर्षाकार को सन्तोष नहीं हो रहा था। वह वैशाली गणतन्त्र को नष्ट करना चाहता था, परन्तु बिंबिसार वैशाली की ओर नजर भी नहीं करता था। वर्षाकार की एक भावना यह भी थी कि शंबुक वन-प्रदेश में रहने वाले राक्षसों को नष्ट कर उस प्रदेश को मगध में मिला देना। यदि ऐसा होता है तो मगध को स्वर्ण आदि की विशाल खाने प्राप्त हो जाएंगी और साथ ही साथ सांनामिक व्यूह की दृष्टि से समग्र गंगातट निर्भय बन जाएगा। परन्तु बिंबिसार ने इम भावना को तनिक भी महत्त्व नहीं दिया। एक बार जो मित्र बन चुका है जिसने आश्रय दिया है और मगध के लिए सर्वथा निरुपद्रवी है, उसको नष्ट करने का कोई प्रयोजन नहीं । काल की गति के साथ युद्ध के नगारे गरज रहे थे. साथ ही साथ एक महापरुष भी समग्र पूर्व भारत को अपनी शांति की पांखों में समेट रहा था। तथागत गौतम बुद्ध का प्रभाव चारों दिशाओं में सूर्य की प्रखर किरणों के समान व्याप्त हो चुका था। एक ओर राजाओं के युद्ध चलते और दूसरी ओर अनेक श्रेष्ठ और श्रीमन्त व्यक्ति अपनी समस्त सम्पत्ति भगवान् बुद्ध के चरण-कमलों में न्योछावर कर उपमम्पदा प्राप्त कर रहे थे। एक ओर युद्ध की चिनगारियां उछल रही थीं। दूसरी ओर ज्ञान की मशाल द्वारा अज्ञानरूपी अन्धकार को छिन्न-भिन्न किया जा रहा था। __ पूर्व भारत के छोटे-बड़े राजपरिवारों में 'बुद्धं शरणं गच्छामि' का जयघोष गूंज रहा था। भगवान् पार्श्वनाथ प्रभु के सम्प्रदाय के अन्तिम अवशेषों की प्रकृति से उत्पन्न भगवान बुद्ध का पंथ, प्रेम और त्याग के मार्ग को प्रशस्त करता हुआ, सभी वर्गों में आदर पा रहा था। ___ भगवान् बुद्ध अपनी शिष्य-सम्पदा के साथ जहां-जहां विहरण करते, वहां हजारों नर-नारी इस तेजपुंज को नमन करने आते और जाते समय भगवान बद्ध के आराधक बनकर जाते। वंशाली में भी तथागत के पंथ ने बहुत क्रांति कर रखी थी। श्री पार्श्वनाथ प्रभु के शासन की परम्परा के अनेक अनुयायी तथागत के अनुयायी बन रहे थे। सिंहनायक जैसे समर्थ जन व्यक्ति भी भगवान् बुद्ध, । नार्ग की ओर आकृष्ट हुए। , ___जनपदकल्याणी आम्रपा :: परम्परा से जैन मतावलम्बी थी, पर वह किसी धर्म-मार्ग में रस नहीं लेती थी. बिंबिसार के जाने के पश्चात् और पुत्र की आशा

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