Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

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Page 354
________________ अलबेली आम्रपाली ३४५ या नहीं ! प्रेम, तमन्ना, ऊमि और ऊष्मा जैसी अपूर्व सम्पत्ति का यह अभाव क्या अलबेली को देखने के पश्चात् दूर नहीं होगा? नहीं. 'नहीं.''नहीं । पत्थर कितना ही सुन्दर क्यों न हो वह अन्ततः पत्थर ही होता है। उसमें चेतना का कोई स्पंदन नहीं होता । सुदास ने सोचा, पद्मरानी को जगाऊं और इस विषय की चर्चा करूं... परन्तु तत्काल उसके अन्तर मन ने विरोध किया. 'कल मैंने पद्मा को बहुत कुछ कहा, किंतु उसके मन पर कोई प्रभाव नहीं हुआ व्यर्थ ही क्यों परेशानी उत्पन्न करूं। यह सोचकर सुदास पुनः सो गया। जब मनुष्य की आंखों में अज्ञान उभरता है तब सत्य दिख नहीं पाता। वह न हित को देख पाता है और न यथार्थ को जान पाता है। सुदास को पत्नी की काया में अणु-अणु में व्याप्त पवित्रता के दर्शन नहीं हुए। जैसा वह चाहता था वैसी उन्मत्तता पदमरानी दिखा नहीं पा रही थी और यही सुदास के मन की बड़ी-से-बड़ी जलन थी। परन्तु पद्मरानी के भीतर कोई शिकायत नहीं थी. 'वह तन से, मन से और हृदय से वैसी की वैसी स्वस्थ थी। वह समझती थी कि किसी भी सूख की प्राप्ति में पूर्वकृत कर्मों का ही योग होता है। यदि मेरी इच्छा सफल नहीं होती है तो मुझे व्यर्थ ही क्यों दु:खी होना चाहिए? ___इसी निश्चिन्तता से वह गहरी नींद सो रही थी । कल एक रूपवती नारी के आलिंगन के लिए पांच लाख स्वर्ण मुद्राओं का पानी हो जाएगा। इस बात का उसको इतना ही दुःख था कि जिस प्रयोजन से धन का व्यय होना चाहिए. उस प्रयोजन के लिए धन का व्यय नहीं हो रहा है, उसका अपव्यय हो रहा है। यदि लक्ष्मी का उपयोग शुभ कार्य में होता तो उसका सदुपयोग होता । परन्तु क्या हो? कायासक्त पति का हृदय इतना जड़ हो गया है कि हितकारी बात भी उसके हृदय का स्पर्श नहीं कर पाती। जैसा भाग्य । प्रातःकाल सुदास शय्या त्याग कर उठा। उसने देखा कि पद्मरानी नीचे धरती पर एक आसन पर बैठकर सामायिक की आराधना कर रही है। सुदास का मन बोल उठा- 'भगतिनी ! हृदयविहीन ! पत्थर की प्रतिमा ! वह तत्काल बाहर चला गया। और उसने देवी आम्रपाली के स्वागत की तैयारी प्रारंभ कर दी। मध्याह्न के बाद वह भोजन करने आया पद्मरानी प्रतीक्षा कर रही थी। सुदास ने पत्नी को देखकर कहा-"पद्मा ! तू तो मेहमान जैसी बन गई है।" "कैसे ?"

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