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३५४ अलबेली आम्रपाली
मेरी पत्री?" प्रश्न के साथ ही आम्रपाली कांप उठी । उसने भवन की ओर देखा 'सुदास एक हाथ में नंगी तलवार और दूसरे हाथ से पत्नी का हाथ पकड़कर इसी ओर आ रहा था। ___ आम्रपाली चिल्लाई-"सुदास ! तलवार फेंक दे 'पद्मा 'मेरी पद्मा" माधु ! तू तत्काल सुदास के पास जा' 'पद्मा को यहां ले आ. 'ओह !..."
भगवान् तथागत तत्काल बोले- "भाग्यशालिनी ! संसार ऐसा ही है... अज्ञान से अन्ध बने व्यक्ति कुछ देख नहीं पाते यह तेरी पुत्री है। किन्तु तेरे हृदय में यह मत्य क्यों अंकुरित नहीं हुआ कि तू पद्मा की माता है।"
"भगवन् ! भन्ते ! मुझे प्रायश्चित्त दें. मुझे इस अज्ञान से बचाएं "मुझे..." कहते-कहते आम्रपाली का स्वर अवरुद्ध हो गया।
भगवान् ने प्रसन्नदृष्टि से आम्रपाली की ओर देखा वहां आश्चर्य से अभिभूत और मूक बना हुआ सुदास पद्मरानी के साथ आ पहुंचा । भगवान् तथागत को वहां उपस्थित देख उसके सारे भाव शांत हो गए। वह हाथ जोड़कर खड़ा रहा।
भगवान् ने सुदास से कहा- "सुदास ! यौवन, आवेश, लक्ष्मी और सत्ता ये अति चंचल होते हैं। तेरी पत्नी अन्य कोई नहीं, यह देवी आम्रपाली की पुत्री है। तारिका ने इसका पालन किया था। एक महान् अपराध से यह बच गई। तू भी बच गया।"
आम्रपाली ने करुण स्वरों में कहा-"कृपावतार ! मुझे प्रायश्चित्त दें।" "भाग्यवती ! तेरे आंसुओं में ही तेरा प्रायश्चित्तनिहित है।"
"नहीं, प्रभु ! इस पापिनी का आप उद्धार करें। अज्ञान के कीचड़ से मुझे निकालें। भन्ते ! मुझे शरण दें।" कहकर आम्रपाली भगवान् के चरणों में लुढ़क गई। उसके केशों में जटित रक्तकमल का एक फूल केशों से विलग हो भगवान् के चरणों में जा गिरा।
पद्मसुन्दरी आश्चर्य के साथ अपनी महान् माता की ओर देख रही थी।
आम्रपाली ने पुनः करुण स्वरों में कहा-"भन्ते ! मुझे अभय प्रदान करें। आज मैं अपना सर्वस्व आपके चरणों में समर्पित करती हूं।" ___ "मुझे विश्वास था कि अभयजित की माता असाधारण है । भद्रे ! तेरा समर्पण संघ का गौरव होगा' 'तेरा प्रायश्चित्त संसार की प्रत्येक स्त्री के लिए विजयध्वज सदृश बनेगा' 'आज से अभयजित तुझे मिल गया। तू अभयजित को मिल गई..."
भगवान बुद्ध के पांचों शिष्य बोल पड़ेबुद्धशरणं गच्छामि। धम्मंशरणं गच्छामि।