Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 356
________________ अलबेली आम्रपाली ३४७ "मुझे पता है, परन्तु मेरा मन अभयजित के विचारों से निवृत्त होता ही नहीं । इसलिए हम यहां से जल्दी निकल पड़ें।" " जैसी आज्ञा ।" कहकर माध्विका तैयारी करने चली गई । मध्याह्न के बाद एकाध घटिका बीती होगी कि जनपदकल्याणी ने स्वर्ण निर्मित चन्द्र रथ में माधु और प्रज्ञा को साथ प्रस्थान कर दिया । अश्व तेजस्वी थे चार कोस मात्र जाना था.. • कोई भी रक्षक साथ में नहीं था । चित्त को शान्त करने तथा उसे अन्यत्र नियोजित करने के एकमात्र आशय से आम्रपाली ने बहुत जल्दी प्रस्थान कर दिया था । उसके मन में यह भी आशा थी कि सुदास के यहां केवल सायं भोजन कर लौट आना है, क्योंकि प्रातःकाल ही उसे आम्रकानन में तथागत के पास जाना है । दूसरी ओर, भगवान् तथागत अपने शिष्यों सहित क्षत्रिय कुंडग्राम से मात्र एक कोश दूर स्थित देवपल्ली में गए थे। देवपल्ली का सेठ कार्तिकचन्द्र भगवान तथागत का परमभक्त था । उसकी भक्ति भावना को साकार करने के लिए ही तथागत दिवस के प्रथम प्रहर में ही वहां पहुंच गए थे और वे संध्या से पूर्व ही वहां से लौट जाने वाले थे । क्षत्रिय कुंडग्राम और आसपास के अन्य अनेक गांवों पर जैन धर्म का प्रचुर प्रभाव था । क्षत्रिय कुंडग्राम में तो एक भी बुद्ध-भक्त मिलना कठिन था । मात्र देवपल्ली का सेठ व्यवसाय के लिए वैशाली में रहता था और अपने भवन को पवित्र करने के लिए तथागत को ले आया था । देवी आम्रपाली का रथ पवन-वेग से आगे बढ़ रहा था। देवी ने आज सप्तरंगी कौशेय का कमर पदक, पीतवर्ण के चमकीले कौशेय का कंचुकीबंध और इन्द्रधनुषी रंगों वाला उत्तरीय धारण किया था । मस्तक के केश कमलाकार गूंथे हुए थे और नवरत्नों सुशोभित दामिनी अपना तेज विकीर्ण कर रही थी । इसी प्रकार कटिमेखला भी नवरत्न जड़ित थी और ऐसा लग रहा था मानो वह उभरते यौवन की संरक्षिका हो । गले में नवरत्न मंडित हार शोभित हो रहा था। उससे नौ रंगों की किरणें विकीर्ण हो रही थीं। इस प्रकार जनपदकल्याणी के धारण किए हुए सारे अलंकार नवरत्नों से मंडित थे । कपाल पर धारण किया हुआ चन्द्रक भी उगते सूर्य की नवरंगी किरणें बिछा रहा हो, ऐसा लग रहा था । देवी आम्रपाली ने ऐसा विश्वमोहक रूप पिछले कितने ही वर्षों से धारण नहीं किया था। देखने वाले को यही लगता जैसे कोई नवोढ़ा अलबेली नारी समस्त संसार पर राज्य करने निकली हो । देवी के आज के रूप को देखकर माध्विका के मन में अनेक प्रश्न उभर रहे

Loading...

Page Navigation
1 ... 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366