Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

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Page 358
________________ अलबेली आम्रपाली ३४६ "आलिंगन ? चुम्बन ...?" "हां, आलिंगन और चुम्बन तो दो मित्रों के बीच भी होता है, माता और पुत्र के बीच भी होता है, भाई-बहन के बीच भी होता है और बापू और बिटिया के बीच भी होता है।" ___ माध्विका अवाक् बनकर आम्रपाली की ओर देखने लगी। रथ नक्षत्रवेग से जा रहा था। प्रज्ञा एक ओर कोने में बैठी थी। परन्तु देवी आम्रपाली को यह पता नहीं था कि उस समय अपने सर्वस्व का स्वामी मगधेश्वर सप्तभूमि प्रासाद में गुप्त वेश में आ गया है । यदि उसको यह सहज ज्ञात हो जाता तो वह सुदास के आज के उत्साह को निरस्त कर देती। बिंबिसार और धनंजय दिन के प्रथम प्रहर के बाद ही वैशाली में आए थे। बिंबिसार सीधा सप्तभूमि प्रासाद पर जाना चाहता था। परन्तु धनंजय चाहता था कि पहले पांथशाला में स्नान आदि से निवृत्त होकर कुछ विश्राम कर फिर देवी से मिलने जाया जाए। इसलिए दोनों एक पांथशाला में ठहरे । स्नान, भोजन आदि से निवृत्त होकर दोनों ने विश्राम किया। धनंजय ने पांथशाला के एक दास को बुला दोनों अश्वों को घुमाकर लाने के लिए भेज दिया। फिर दोनों गुप्त वेश में सप्तभमि प्रासाद में गए। प्रासाद के द्वारपालों ने उन्हें द्वार पर रोका तब धनंजय ने माध्विका या बसंतिका को बुलाने के लिए कहा। कुछ ही समय में बसंतिका आ गई । धनंजय ने उसे एक और बुलाकर अपना परिचय दिया । बसंतिका अत्यन्त आदरभाव से दोनों को अन्दर ले गई। एक कक्ष में जाने के बाद मगधेश्वर ने पूछा-"देवी क्या कर रही है ?" "वे तो कुछ ही समय पूर्व बाहर गई हैं।" "बाहर?" "हां, महाराज ! क्षत्रियकुंड ग्राम धनकुबेर सेठ सुदास के निमन्त्रण पर..." "तो देवी क्षत्रिय कुंड ग्राम की ओर गई हैं ?" "हां, गांव से थोड़ी दूरी पर ही सुदास का भवन है।" "देवी कब तक लौटेंगी?" "सम्भव है, कल प्रातःकाल'।" बसंतिका ने कहा। "ओह ! तब तू एक काम कर' 'दो अश्व तैयार करा और एक दास को हमारे साथ भेज जिससे कि हम तत्काल सुदास के भवन पर जा सकें।" बिंबिसार ने कहा। और एकाध घटिका के पश्चात् एक दास के साथ मगधेश्वर और धनंजय तेजस्वी अश्वों पर बैठकर आर्य सुदास के भवन की ओर चल पड़े।

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