Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

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Page 359
________________ ३५० अलबेली आम्रपाली उस समय देवी आम्रपाली का रथ आर्य सुदास के भवन में प्रविष्ट हो गया था। आर्य सुदास के दास-दासी बहुत घबरा गए, क्योंकि उस समय आर्य सुदास भवन में नहीं था और वह रत्नाहार लेने अपने पुराने घर गया था। मनोरमा चतुर थी । जैसे ही आम्रपाली का रथ रुका, वह दौड़कर गई और देवी का भाव भरा स्वागत किया। माविका ने पूछा- "आर्य सुदास ..." "महादेवी तो संध्या के समय आने वाली थीं, इसलिए उनके स्वागत के लिए कोई वस्तु लेने वे गांव में गए हैं. ''अभी आ जाएंगे।" कहकर मनोरमा ने महादेवी की ओर देखकर कहा-"महादेवि ! आप भवन में पधारें।" __आम्रपाली, माविका और प्रज्ञा–तीनों रथ से नीचे उतरी। पद्मसुंदरी नीचे के खंड में ही बैठी थी उसने अभी तक अलंकार धारण नहीं किए थे. केवल वस्त्रों का ही परिवर्तन किया था और उसे यह कल्पना भी नहीं थी कि देवी आम्रपाली इस प्रकार बहुत पहले आ जाएंगी? । ___ मनोरमा के साथ देवी आम्रपाली ने नीचे खंड में प्रवेश किया। इसी खंड में पदमरानी एक आसन पर बैठी थी 'आम्रपाली की दृष्टि पद्मरानी के स्वर्गीय रूप पर पड़ी और उसने मन्द स्वर में मनोरमा से पूछा-"कौन है ?" "आर्य सुदास की पत्नी ।" मनोरमा बोली। आम्रपाली दो कदम पीछे हटी क्या आर्य सुदास ऐसी सर्वश्रेष्ठ सुंदरी का स्वामी है ? क्या मुझे निमन्त्रित करने की पृष्ठभूमि में मेरे अपमान का ही तो प्रयोजन नहीं रहा है ? क्या सुदास यह बताना चाहता है कि जनपदकल्याणी को अपने जिस रूप पर गर्व है, वह रूप तो किसी गिनती में नहीं है.. उस रूप से अनन्त गुना अधिक रूप मेरे भवन में है। यह कल्पना मन में आते ही आम्रपाली कांप उठी और तत्काल वह वहां से मुड़ गई। मनोरमा दौड़ती-दौड़ती पीछे गई और बोली- "देवि, आप विराजें..." "सुदास को आने दें, तब तक मैं भवन के उपवन में रहूंगी।" देवी आम्रपाली ने कहा और वह खंड के बाहर निकल गई। पद्मसुंदरी कुछ नहीं समझ सकी वह अवाक् बनकर वैसे ही बैठी रही। आम्रपाली के मन में यह रूप देखकर अनेक विचार ज्वालामुखी की तरह उछल रहे थे वह प्रांगण में आई और उपवन की ओर जाने लगी। उसी समय सुदास का रथ उपवन के मुख्य द्वार में प्रविष्ट हुआ। ७०. 'बुद्धं शरणं गच्छामि' भवन की सोपान श्रेणी उतर कर जनपदकल्याणी उपवन की ओर मुड़ी । देवी

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