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३४२ अलबेली आम्रपाली
भगवान् गौतम से मिलना चाहती हूं. 'एक नारी से डरकर छुपकर घूमने वाले कायर साधक से मैं अभी अपने प्रश्न का उत्तर चाहती हूं।"
"देवि ! कृपाकर आप प्रातःकाल आना। आज्ञा का पालन करना हमारा कर्तव्य है।" एक रक्षक बोला। ___ "मुझे दिन में अवकाश नहीं मिलता। मैं अभी मिलना चाहती हूं..'कल भी मैं यदि आऊंगी तो इसी समय आ पाऊंगी। इसलिए तुम जाकर मेरे आगमन की बात तथागत से कहो और आज्ञा ले आओ। मैं यहीं खड़ी हूं।" ___एक भिक्षु बोला-"भद्रे ! आपको प्रतीक्षा करते खड़ा रखना शोभा नहीं देता, कारण यह है कि नियम में परिवर्तन अशक्य है।" ____ आम्रपाली जोर से हंस पड़ी और माध्विका के सामने देखकर बोली--"तेरे तथागत का दंभ देखा? जो व्यक्ति एक नारी से डरकर भागता फिरता है, वह दूसरे का कल्याण क्या कर पाएगा? नारी से डरने वाले और नारी को तुच्छ मानने वाले जिस दिन भगवान् कहलायेंगे, उस दिन भगवान को लज्जित होकर छुप जाना पड़ेगा''चल लौट चलें।"
उसी समय अति शांत, अति मधुर और अति प्रभावशाली आवाज सुनाई दी-"भाग्यवती ! चित्त को शांत कर''तू अपने प्रिय और ज्ञानमूर्ति अभयजित को लेने आई है। परन्तु सौभाग्यशालिनी ! धैर्य सबसे उत्तम रत्न है तेरा पुत्र तुझे मिलेगा' 'तू अपने पुत्र से मिलेगी।" तथागत ने प्रसन्न और गंभीर स्वर में कहा।
उस अंधकार में भी उनकी तेजोमय काया चंद्र के समान शोभित हो रही
थी।
___ भगवान् तथागत घूमते-घूमते थोड़ी दूर एक आम्रवृक्ष के नीचे आये थे।
और परस्पर होने वाले संवाद को सुनकर इधर आ गए'''चारों भिक्षु और रक्षक सिर झुकाकर एक ओर चले गये ।
आम्रपाली गौतम बुद्ध के तेजोमय बदन की ओर देखने लगी। माध्विका ने सिर झुकाया।
भगवान् बोले-"आम्रपाली ! जहां ज्ञान निर्मल है वहां नर और नारी के भेद को अवकाश नहीं है। परन्तु यह ज्ञान सबको प्राप्त नहीं होता। और जब तक विशुद्ध ज्ञान प्राप्त न हो तब तक परम्परा के कल्याण के लिए विधि-निषेध आवश्यक होता है । प्रियदर्शिनी ! भावी पीढ़ी के लिए पंथ को स्वच्छ रखना, कोई दोष नहीं है, कोई कायरता नहीं है। तेरे अपने विचार कुछ भी हों, परन्तु एक सत्य को तू याद रख कि बंधनों को बांधना सहज है।'बंधनों को तोड़ना दुष्कर है 'मन में विद्यमान मोह को नियंत्रित किए बिना त्याग कभी सहज नहीं बन सकता।"