Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

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Page 339
________________ ३३० अलबेली आम्रपाली आम्रपाली को देखने के लिए दूर देशान्तरों से लोग आते थे । आम्रपाली को चित्रांकित करने के लिए विविध राज्य के कलाकार भी आते थे । और वह अपने प्रियतम, पुत्री और पुत्र तथा जीवनगत संस्मरणों को भूलने के लिए अस्थिर तत्त्वों का सहारा ले रही थी। उसका मन दृढ़ था, इसलिए अपने रूप और यौवन को बनाये रखने में सफल हुई थी। कभी-कभी वह रथ में बैठकर उपवन की ओर जाती और मार्ग में बौद्ध भिक्षु को देखते ही उसे अभयजित की स्मृति हो आती, और अभयजित के स्मरण के साथ गौतम बुद्ध को रूप की ज्वाला में भस्मसात् करने का मनोवेग भी आ जाता। और उसने यह निश्चय किया कि अब कभी गौतम बुद्ध वैशाली में आएंगे तो मैं उनसे चर्चा करूंगी और उनके समक्ष रूप यौवन और अभिनय का जाल बिछाकर उनके मन को जीत लूंगी। कभी किसी रात में वीणा के स्वर उसके कानों से टकराते तब उसे प्रियतम की स्मृति झकझोर जाती.. कभी-कभी सूनी शय्या अंगारों के समान लगती। फिर भी हृदय में दबे पड़े संस्मरणों को वह सदा के लिए नष्ट नहीं कर सकती थी, केवल वह भूलने का प्रयत्न करती थी। परन्तु उसे यह ज्ञात नहीं था कि जिसके प्रति प्रेमभाव अधिक होता है, उसे भुलाए जाने पर भी भूला नहीं जाता। ऐसा पुरुषार्थ करने वालों को तो संसार से सर्वथा विमुक्त होना पड़ता है। मन को नियंत्रित करना होता है । यह कार्य क्षुद्र मैरेय तथा विलास के उपकरणों से सम्पन्न नहीं होता। विलास के उपकरण संमूर्छनी नाम की निद्रादायी गुटिका के समान होते हैं । मनुष्य मात्र मूर्छा में पड़ा रहता है । सुपुप्ति की गोद में क्रीड़ा करता रहता है और जब मूर्छा टूटती है, वह जागता है तब वही वेदना उसके प्राणों को कुरेदती है। सुदास अपने आपको धन्य और पुण्यवान मानकर क्षत्रिय कुंडग्राम में आया। उसने अपने विवाह के उपलक्ष में दास-दासियों को बहुत धनमाल दिया और पत्नी के साथ रंगरेली करने वह नगरी से एक कोश दूर अपने रंगभवन में रहने चला गया। परन्तु एकाध महीने के सहवास से वह जानने लगा कि पद्मरानी सुन्दर है, परन्तु उमिल नहीं है । इसमें ऊष्मा और उत्तेजना का अभाव है । पति की आज्ञा को शिरोधार्य करने के अतिरिक्त इसमें कोई शक्ति नहीं है । पति को इशारों से नचाने की योग्यता पद्मरानी में नहीं है। पुरुष यदि सुन्दर पत्नी के इशारों पर न नाचे, उसका गुलाम न बने तो तृप्ति अधूरी रह जाती है । पद्मरानी स्वभाव से ही शांत थी। तारिका ने उसके प्राणों में धर्म के संस्कार प्रवाहित किए थे।

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