Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

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Page 333
________________ ३२४ अलबेली आम्रपाली नहीं लगे तो मैं वचन देता हूं कि मैं तुझे रोकंगा नहीं. "तू खुशी से वंशाली लौट जाना।" यह संदेश पाकर आम्रपाली राजगृही जाने के लिए उतावली हो गई... परन्तु दूसरे ही क्षण उसने सोचा, यदि वहां जाने पर स्वामी यहां न आने दें... मैं भी न अड़ सकू. और यदि ऐसा हो तो वैशाली नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा' 'नहीं, नहीं.."जिस धरती ने मुझे जन्म दिया है, गौरव और सम्मान दिया है, उस धरती के हित के लिए मुझे अपने स्वार्थों को विस्मृत कर देना चाहिए । _ऐसा विचार कर आम्रपाली ने एक दिन शुभ मुहूर्त में अभयजित को राजगृही की ओर प्रस्थान करा दिया। उसके साथ दास-दासी भी नियोजित थे। परन्तु वैशाली और राजगृही के बीच मार्ग में ही मगध देश का भावी कर्णधार अभयजित आत्मा का कर्णधार बन गया। एक दिन अभयजित ने अपने सभी कर्मकरों के साथ एक स्थान पर रात बिताने के लिए पड़ाव डाला । मस्त अभयजित बालसुलभ स्वभाव के कारण खेलता-खेलता पड़ाव से दूर निकल गया। किसी को इसका ध्यान नहीं रहा'' और वह चलते-चलते एकाध कोस की दूरी पर स्थित एक बौद्ध विहार में जा पहुंचा। उस समय भगवान् तथागत केवल दो दिन के लिए उस विहार में आए थे। कल वे यहां से विहार करने वाले थे। और यह सुन्दर बालक अपरिचित व्यक्ति की भांति विहार के चारों ओर चक्कर काटने लगा। एक शिष्य ने उसे देखा। निकट आकर प्रेम भरे स्वर में उसको सम्बोधित कर आनन्द के पास ले गया। उस समय भगवान् तथागत और आनन्द एक विशाल वृक्ष के नीचे बैठे थे और धर्म-जागरण कर रहे थे। और इस सुन्दर बालक की ओर देखकर आनन्द ने प्रश्न किया-“भद्र बालक ! तू किसको ढूंढ़ रहा है ? तेरे माता-पिता कहां हैं ?" अभयजित ने अतिमधुर बोली में कहा-"मैं अपने माता-पिता को नहीं ढूंढ़ रहा हूं...।" ___ आनन्द ने बालक के मस्तक पर हाथ रखकर प्रसन्नचित्त से कहा-"तब तो क्या तू भटक गया है ?" __ "जी, मैं बोधिसत्त्व को ढूंढ़ने निकला हूं और निर्वाणरूपी माता के पास जाना चाहता हूं।' दस वर्ष के बालक के मन में ऐसे उत्तम विचार ? आनन्द आश्चर्य से भर गया। शांत भाव में स्थित गौतम बुद्ध ने कहा"मानन्द ! माता का अपार वैभव इसे प्रिय नहीं है । पिता के साम्राज्य की इसे

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