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३०८ अलबेली आम्रपाली
"वे मानते हैं कि आप वैशाली को नष्ट-भ्रष्ट करना चाहते हैं, इसलिए वे सजग बन गए हैं । प्रत्येक मागध को वे शंका की दृष्टि से देखते हैं।"
'अच्छा' कहकर बिबिसार आसन से उठा और कक्ष में एक चक्कर लगाकर बोला-दो दिन बाद हमें प्रस्थान करना है। किसी को गंध तक न आने पाए कि हम वैशाली जा रहे हैं।"
"ऐसा ही होगा।" धनंजय कहकर खड़ा हो गया।
६३. अधीर हृदय जनता के हृदय में राज्य के प्रति क्या भावना है और जनता के प्राणों में क्या दर्द है, यह जानने के बहाने बिंबिसार और धनंजय-दोनों गुप्त वेश में वहां से निकल पड़े। दोनों के पास दो अश्व और सामान्य सामान था। विशेष अस्त्र-शस्त्र साथ में नहीं लिये थे। दोनों ने तलवारें साथ में ली थीं। ___ दोनों ब्राह्मण वेश धारण कर निकले थे, क्योंकि इस वेश के सिवाय दूसरा वेश बिंबिसार के लिए उपयुक्त नहीं था। उसके कपाल के तेज से उसकी पहचान स्वतः सम्भव थी। उसकी आंखों की चमक प्रत्येक को आश्चर्य में डालने वाली थी और उसका गौर-वर्ण भी उसके आभिजात्य कुल का परिचायक था। इसलिए दोनों ने ब्राह्मण वेश धारण किया था।
वर्षाकार तथा अन्य मन्त्री बिंबिसार को इस वेश में देखकर मुग्ध हो गए थे। सबको यही लग रहा था कि महाराज को इस वेश में कोई भी नहीं पहचान पाएगा।
राजमाता ने अत्यन्त अमनस्कता से आज्ञा दी थी।
कौशलनंदिनी तथा अन्य रानियों ने इस प्रवास का विरोध किया, किन्तु बिबिसार ने सबको प्रेम से समझा-बुझाकर शांत किया। अन्त में कौशलनंदिनी ने पुरुष वेश में साथ रहने का निश्चय किया; किन्तु बिंबिसार ने कहा-"प्रिये ! तेरा चन्द्रबदन और कामनगारे नयन किसी से छिपने वाले नहीं हैं और विशेषतः तेरी केशराशि, जो पांवों पक पहुंचती है, उसको कैसे छुपाया जाएगा? पथगत बाधाएं भी कम नहीं होंगी । तेरा मेरे साथ आना दोनों के लिए बाधा उपस्थित करने वाला होगा।"
इस प्रकार कौशलनंदिनी को समझाकर, बिंबिसार वहां से चल पड़े।
प्रवास का यह बहाना बहानामात्र न रहे, यह सोचकर प्रवास के प्रथम तीन दिन तक वे मगध की जनता का दिल पढ़ते रहे । उन्होंने जाना कि जनता प्रसन्नचित्त है। उन्हें किसी प्रकार की शिकायत नहीं है।