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अलबेली आम्रपाली ३०७
"गुप्त वेश में ?"
"हां मित्र ! यदि प्रजा के हृदय को जानना है तो मुझे उसके बीच एक सामान्य व्यक्ति के रूप में रहना होगा।"
"आपके विचार उत्तम हैं, परन्तु..." "उत्तम विचारों का क्रियान्वयन करने में क्या बाधा है ?"
"मगध की जनता के हृदय में आपका स्थान बेजोड़ है। जनता आपको देव की भांति पूजती है।" ___"ऐसा सभी कहते हैं, परन्तु जनता की वेदना को जानने का यही उपाय
वर्षाकार विचार करने लगा। दोनों कुछ समय तक मौन रहे । फिर मौन भंग कर वर्षाकार बोला-"महाराज ! उत्तम विचार सदा आदरणीय होते हैं। परन्तु इस कार्य के लिए अभी समय का परिपाक नहीं हुआ है। अभी तक मगध साम्राज्य का ध्वज दूर-दूर तक नहीं फहराया है।"
इस प्रकार श्रेणिक और वर्षाकार के बीच परस्पर अनेक विचार आए। कुछ समय पश्चात् वर्षाकार चला गया।
ठीक सातवें दिन धनंजय आ गया।
बिंबिसार ने धनंजय को अपने व्यक्तिगत कक्ष में बिठाकर पूछा--"देवी तो कुशल हैं न ?" ___"देवी आम्रपाली गणतन्त्र के किसी कार्यवश एक महीने से बाहर गयी हुई
"गणतन्त्र के कार्य के लिए ?" "हां, माध्विका ने ही मुझे बताया था।" "किस ओर गयी हैं ? कब आएंगी?"
"यह जानने के लिए मैंने बहुत प्रयत्न किए, पर कुछ भी ज्ञात नहीं हो सका। मात्र इतना ही ज्ञात हो सका कि कौशल के युवराज के लिए किसी प्रयोजन को लेकर वे गयी हैं। हां, माध्विका बता रही थी कि एकाध सप्ताह में आ जाएंगी।"
"अच्छा, धनंजय ! हमें दो-चार दिनों में प्रस्थान करना है। मैंने महामन्त्री को समझा दिया है।"
"कैसे ?" "गुप्तवेश में मगध की जनता के मन को जानने के लिए..."
बीच में ही धनंजय बोला-"युक्ति तो उत्तम है परन्तु वैशाली में लिच्छवी बहुत सावचेत हो गए हैं।"
"किस बात में ?