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१३४ अलबेली आम्रपाली
और रानी की मीठी नींद टूट गई। दोनों जाग गए। रानी ने वस्त्र व्यवस्थित किए । वह बोली-"कौन है ?"
"मैं हूं महादेवी जी!" मुख्य दासी ने कहा। रानी ने तत्काल दरवाजा खोला।
मुख्य दासी अन्दर आई और नमस्कार कर बोली-"राजराजेश्वर की जय हो। महामन्त्री और चरनायक आपसे मिलने आए हैं।"
"वे कहां हैं ?" "मंत्रणागृह में।" "दोनों को यहां भेजो।" रानी ने कहा।
तत्काल मगधेश्वर बोले- "नहीं, मैं स्वयं वहां जाता हूं । महत्त्व के कार्य के बिना महामन्त्री इतनी रात गये नहीं आते। सम्भव है कोई विशेष प्रयोजन हो।"
रानी मौन रही। अभी भी उसकी आंखें गुलाबी नींद से खुल नहीं रही थीं।
मगधेश्वर तत्काल तैयार होकर शयनगृह से बाहर निकले और मंत्रणागृह की ओर चल पड़े।
रानी त्रैलोक्यसुन्दरी पुनः सो गयी। मुख्य दासी दरवाजा बन्द कर चली गयी। लगभग अर्ध-घटिका के बाद पुनः दासी ने द्वार को खटखटाया। रानी गहरी नींद में थी। मीठे स्वप्नों में वह खो रही थी। इतने में ही आवाज ने उसका निद्राभंग किया। वह बोली-"कौन है ?" ___"मैं हूं । आप शीघ्र ही मंत्रणागृह में पधारें। सभी आपकी प्रतीक्षा कर रहे
रानी वस्त्रों को व्यवस्थित कर वहां से दासी को साथ ले चली।
वह मंत्रणागृह में पहुंची। वहां के गमगीन वातावरण को देखकर वह स्तब्ध रह गयी । उसने पूछा-"आज मगधेश्वर का चेहरा।"
बीच में ही महामन्त्री ने कहा-"देवि ! बहुत ही धैर्य रखने जैसी एक अकल्पित घटना घटी है।"
"क्या हुआ है ?"
"संसार में जो होता आया है, वही हुआ है। पर अपने लिए न होने वाली घटना घटित हुई है। हृदय को आघात लगने वाली यह घटना है।"
रानी का चेहरा गम्भीर हो गया। वह महामन्त्री के सामने देखने लगी।
महामन्त्री ने कहा-"महादेवि ! कुछ ही दिनों पूर्व महाराज कुमार अपने मित्रों के साथ कादंबिनी का नृत्य देखने गये थे और नर्तकी को देखकर विह्वल हो गये थे...?"