Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

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Page 303
________________ २९४ अलबेली आम्रपाली को वह जीवक से मिला और मगधेश्वर के स्वास्थ्य की चर्चा की। जीवक ने कहा-"मगधेश्वर की यह अंतिम शय्या है । औषधियां यदि काम करेंगी तो एक वर्ष तक कुछ नहीं बिगड़ेगा। अन्यथा तीन-चार मास से अधिक जीवन नहीं चल सकेगा।" "भाई ! मैंने तो सुना है कि आयुर्वेद विज्ञान ने ऐसी औषधियां खोजी हैं जिससे बुढ़ापा यौवन में बदल जाता है।" "आपकी बात सही है। ऐसी औषधियां प्राप्य भी हैं, किन्तु विपत्ति कुछ दूसरी है । ये औषधियां जितेन्द्रिय पुरुषों के ही लिए कारगर होती हैं । मगधेश्वर का जीवन...।" ___"मैं समझ गया 'इनका रोग क्या है ?" "इनके कोई रोग नहीं है केवल शारीरिक शक्तियों का स्वाभाविक ह्रास "क्या इस ह्रास को रोका जा सकता है ?" - "रोका नहीं जा सकता। कोई रोक भी नहीं सकता। प्रकृति के गुणधर्म का परिवर्तन कभी नहीं हो सकता।" महावंद्य जीवक ने कहा । बिबिसार कुछ निराश हो गया। इस प्रकार एक सप्ताह बीत गया। मगधेश्वर की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. "कुमार जीवक की औषधि का प्रभाव इतना ही हो रहा था कि महाराजा का चित्त प्रसन्न रहता और वे कुछ बातचीत कर सकते और शय्या पर बैठे रह सकते थे। महादेवी त्रैलोक्यसुन्दरी को इस परिवर्तन में आशा दीख रही थी, परन्तु कुमार जीवक को कुछ भी आशा नहीं थी। पथ्यापथ्य बहुत कठोर था, फिर भी उसका विधिवत् पालन होता था। मात्र रानी के मन में यह विचार आता कि पौष्टिक आहार दिया जाए तो शक्ति अवश्य उतर सकती है। परन्तु जीवक कहता- 'सादा आहार जितना बलदायक होगा उतना बल पौष्टिक आहार नहीं दे सकेगा। गरिष्ठ या शक्तिशाली आहार पचा पाने की शक्ति मगधेश्वर की आंतों में अब नहीं है । इस स्थिति में शक्तिवर्धक आहार विषरूप ही होता है।" जीवक के इन विचारों का राजवैद्य ने भी समर्थन किया था। इसलिए देवी त्रैलोक्यसुन्दरी अपनी इच्छानुसार पथ्य में परिवर्तन नहीं कर पा रही थी। पिता की सेवा-परिचर्या का भार श्रेणिक ने संभाल रखा था और वह प्रातः काल से रात्रि के प्रथम प्रहर तक पिताजी के पास ही बैठा रहता था। मगधेश्वर के अन्य पुत्र यदा-कदा आकर कुशल क्षेम-पूछ जाते थे। बिंबिसार पिता की परिचर्या में इतना व्यस्त हो गया था कि उज्जयिनी में नंदा को संदेश तक नहीं भेज

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