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अलबेली आम्रपाली ३०३
नहीं, वर्तमान में हैं मुझे जितना आनन्द चाहिए उससे भी अधिक आनन्द मिल रहा है ।" आम्रपाली ने प्रसन्न मुद्रा में कहा ।
माविका यह समझ नहीं सकी कि इस प्रसन्न मुद्रा के पीछे और इस हास्य तथा आनन्द की अभिव्यक्ति की पृष्ठिभूमि में नारी के अभिमान की ज्योति रेखा तो नहीं जल रही है ?
६२. प्रिया की याद
और दो वर्ष बीत गए ।
इन दो वर्षों में श्रेणिक का जय-जयकर पूर्व भारत में प्रसृत हो गया । मागधी सेना को भव्य और अधिक सम्पन्न बनाया गया । मगध का कोषागार बहुत संपन्न था। उसमें अपार स्वर्ण पड़ा था । श्रेणिक ने उसका सदुपयोग मगध की सेना को अजेय बनाने में किया ।
छोटे-बड़े अनेक युद्धों को जीतकर उसने मगध की सीमाओं को विस्तृत किया । अंग-बंग, गौड देशों के साथ मैत्री सम्बन्ध दृढ़ हुए। बिविसार ने अनेक कन्याओं के साथ विवाह किया ।
इन दो वर्षों के अन्तराल में बिंबिसार ने कभी अपनी वीणा को याद नहीं किया । धनुष-बाण को ही याद रखा राक्षस राज शंबुक ने जो धनुविद्या सिखाई थी, उसका और अधिक विकास किया। बिंबिसार दुर्गम और अजेय माने जाने वाले पर्वतीय प्रदेश पर्वतपुर के खूंखार महाराजा को मात्र एक महीने के युद्ध में परास्त कर, पार्वत्य प्रदेश तक मगध की विजय ध्वजा फहराई । यह जानकर वैशाली धूज उठी । वैशाली गणराज्य इस भय से ग्रस्त हो गया कि आज नहीं तो कल बिंबिसार वैशाली को अवश्य नष्ट कर देगा ।
परन्तु वैशाली गणतन्त्र के संचालकों को यह ज्ञात नहीं था कि जब तक देबी आम्रपाली वैशाली में है तब तक बिंबिसार वैशाली गणतन्त्र का कुछ कर सके, ऐसी बात नहीं है । इस बात को केवल वर्षाकार ही समझ सका था। जब वह वैशाली पर विजय पाने की चर्चा करता, तब बिंबिसार हंसकर उसे टाल देता और कहता - "महामंत्री ! वैशाली में मेरी प्रिया है ... करूंगा ।"
उसे कभी नष्ट नहीं
"महाराज ! राजनीति और प्रियजनों से सम्बन्ध दोनों परस्पर विरोधी तत्त्व हैं । सम्बन्धों की ममता को पैरों तले कुचलने वाले ही अपने ध्येय में सफल होते हैं । आज वैशाली मगध के लिए भयस्थान बन गया है । वह आर्य संस्कृति पर करारी चोट करने पर तुला हुआ है । वहां के लोगों की कामुकता और स्वेच्छाचारिता का वेग मगध की जनता को भी आकृष्ट कर लेगा । महाराज ! जनता उत्तम की प्रशंसा करती है और कनिष्ठ का अनुकरण करती है ।"