Book Title: albeli amrapali
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
Publisher: Lokchetna Prakashan

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Page 305
________________ २९६ अलबेली आम्रपाली बहुत समय से देख रहे थे, परन्तु वे कुछ भी नहीं कर सके । वैशाली उत्तरोत्तर ब्राह्मण-द्रोही बन रहा है । वेद और संहिताओं के प्रति वहां घृणा खड़ी की जा रही है। लोग अधिक से अधिक अधार्मिक बन रहे हैं । आज तक वहां श्रमण संस्कृति की आराधना चल रही थी। निर्ग्रन्थ प्रवचन का बोलबाला था। अब गौतम बुद्ध की हवा तीव्र हो रही है। जनों की श्रमण-संस्कृति एक अपेक्षा से उत्तम थी। परन्तु वह बौद्ध संस्कृति तो वर्णाश्रम धर्म को नष्ट कर देगी। परन्तु क्या हो ? मगधेश्वर का स्वप्न साकार हो, उससे पूर्व ही वे शय्या परवश हो गए।" वर्षाकार के मन में, वैशाली के प्रति रही हुई वैर भावना को देखकर पल भर के लिए श्रेणिक कांप उठा। उसके लिए वैशाली प्रथम प्रणय की क्रीडा स्थली है। वैशाली में प्रियतमा आम्रपाली रहती है। जब कभी भी आम्रपाली को इस राजभवन में लाना ही है। यदि वैशाली के प्रति ऐसी ही भावना पुष्ट होती रही तो आम्रपाली कभी यहां पर नहीं रखेगी। इन विचारों में बिंबिसार का मन खो गया। वह मौन रहा । वर्षाकारको आश्चर्य हुआ कि वैशाली का नाम सुनते ही बिंबिसार विचारमग्न कैसे हो गए ? वह पुनः बोला-"महाराज ! क्षमा करें। मेरे मन में वैशाली के प्रति कोई द्वेष भाव नहीं है। परन्तु यदि भारतीय संस्कृति को जीवित रखना है तो वैशाली को सबसे पहले नष्ट करना ही होगा। मगध की जनता में राजा के प्रति जो श्रद्धा है, उसे बचाना हो तो वैशाली ही नहीं, पूर्व भारत के सभी गणतंत्रों को नष्ट करना होगा।" "मित्र ! तुमने तक्षशिला में रहकर मगध-मण्डल की ही आराधना की हो, ऐसा प्रतीत होता है।" "मगध-मण्डल की आराधना तो रक्त के कण-कण में है। परन्तु मैं समस्त भारत के कल्याण की आराधना चाहता हूं । भारतवर्ष में आज कोई एक शक्तिशाली नहीं है । परिणामस्वरूप इसके अनेक टुकड़े हो गए हैं । टुकड़ों में विभाजित देश की स्वाधीनता खतरे में पड़ जाती है । भारतवर्ष का कल्याण कोई एक समर्थ और शक्तिशाली चक्रवर्ती ही कर सकता है और ऐसी शक्ति का दर्शन मुझे आपमें हो रहा है।" "मित्र ! तेरी स्वप्न भूमि बहुत विराट और चित्ताकर्षक है । संसार में सभी व्यक्ति अपनों को महान् मानते हैं। मेरे में महान शक्ति का दर्शन तेरे प्रेम का प्रतीक है। किन्तु मेरी परिस्थिति सर्वथा भिन्न है । मैंने कभी मगध का शासक बनने का स्वप्न नहीं संजोया''मैं तो सदा अपनी वीणा में मस्त था वह मस्ती आज अदृश्य-सी हो रही है। तुझे मैंने नहीं बताया। जब मैं मगध से निष्कासित हुआ तब वैशाली में रहा और वैशाली की महान् कीर्ति देवी आम्रपाली...।" बीच में ही वर्षाकार ने पूछा- "क्या आप जनपदकल्याणी के परिचय में

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