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१७६ अलबेली आम्रपाली
से चली गई।
३७. राग चन्द्रनंदिनी रात्रि के द्वितीय प्रहर की अंतिम घटिका।
वसन्तगृह के सामने वाले उद्यान में एक लतामंडप में देवी आम्रपाली का नर्तकीवृन्द और आठ-दस परिचारिकाएं बैठी थीं। वहां एक मसण गद्दी बिछी हुई थी। उस पर अभी कोई नहीं बैठा था। __मंडप के सामने वाले भाग में देवी आम्रपाली की वाद्यकार मंडली बैठी थी। वहां भी एक मसृण गद्दी अभी तक रिक्त ही थी। उसके पास महाबिंब वीणा पड़ी थी और धनंजय एक ओर बैठा था।
सभी देवी आम्रपाली और युवराज के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे।
आज की यह गोष्ठी आम्रपाली की भावना को साकार करने के लिए आयोजित की गई थी। क्योंकि सभी वाद्यकार और कलाकार युवराज बिंबिसार का वीणावादन सुनने के लिए तरस रहे थे।
देवी आम्रपाली ने सभी की इच्छा को जानकर अपने स्वामी से यह बात कही थी और बिंबिसार ने स्वीकृति दे दी थी, क्योंकि एक सप्ताह के भीतर उन्हें वैशाली तथा प्रियतमा और इस भवन के सुमधुर संस्मरणों को छोड़कर दूर-दूर चला जाना था।
उन्हें किस ओर जाना है, यह निर्णय उन्होंने धनंजय के साथ बैठकर कर लिया था। उन्होंने यह निश्चय किया था कि उज्जैनी एक सुन्दर, समृद्ध और कलाप्रिय नगरी है । वहां का राजा अति उग्र और प्रतापी होने पर भी वहां के नागरिक कलाप्रिय हैं । वहां दो-तीन महीने रहा जा सकेगा और नयी-नयी बातें भी जानी जा सकेंगी। ___इस प्रकार बिबिसार ने उत्तर भारत से कहीं दूर जाने का निश्चय किया था । अभी तक उन्होंने अपना यह अभिप्राय प्रियतमा को नहीं बताया था। वे यही चाहते थे कि विदाई के समय ही वे अपनी प्रियतमा को यह बात बताएंगे। बिंबिसार जानते थे कि आम्रपाली इतनी दूर जाने की बात मानेगी नहीं। वह वैशाली के निकट ही रहने की बात पसन्द करेगी। इसलिए अपना निर्णय विदाई के समय ही ज्ञात कराने की बात सोची थी।
धनंजय ने यहां के ये सारे समाचार महाराज प्रसेनजित को भेज दिए थे। वह निश्चिन्त था ।
रात का दूसरा प्रहर बीत गया। इतने में ही बिबिसार, आम्रपाली और माध्विका–तीनों लतामंडप में प्रविष्ट हुई । वहां बैठे सभी लोगों ने खड़े होकर