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अलबेली आम्रपाली २७३
पांथशाला में आम्रपाली का संदेशवाहक आ पहुंचा। जब बिंबिसार वहां नहीं मिले, तब उसने वहां पूछताछ की पांथशाला के संचालक ने उसको कहा" जयकीर्ति नाम के एक तरुण सेठ यहां कुछ दिन रुके थे। फिर वे अचानक बाहर गांव चले गए । उनका सेवक दामोदर भी यहीं रहता था । वह भी आजकल नहीं आ रहा है। तुम धनदत्त सेठ की दुकान पर जाओ, दामोदर वहीं काम करता है । उससे मिलने पर सम्भवतः तुमको जयकीर्ति सेठ का अता-पता लग सकेगा ।"
उस संदेशवाहक ने धनदत्त सेठ की दुकान पर आकर दामोदर के विषय में पूछा ।
दामोदर से मुलाकात होने पर उसने सेठ जयकीर्ति कहां रहते हैं ? वे यहां हैं या नहीं, आदि प्रश्न पूछे ।
दामोदर बोला - "सेठ जयकीर्ति यहीं हैं । आपको क्या काम है ?" "मुझे एक पत्र देना है और उसका उत्तर भी ले जाना है ।" संदेशवाहक ने
कहा ।
" पत्र साथ में लाए हैं ?"
"हां" - यह कहकर संदेशवाहक ने स्वर्ण की नलिका निकाली ।
इतने में ही जयकीर्ति भवन से दुकान पर आए । दामोदर ने कहा - "देखो, जो आ रहे हैं, वे ही सेठ जयकीर्ति हैं । लाओ, मैं पत्र उनको दे दूं ।"
संदेशवाहक ने स्वर्ण की नलिका दामोदर को दे दी ।
दामोदर जयकीर्ति के पास जाकर बोला - " वैशाली से एक पत्र लेकर संदेशवाहक आया है। यह रहा पत्र ।"
वैशाली का नाम सुनते ही जयकीर्ति चौंका । मानसपटल से स्खलित आम्रपाली की स्मृति हो आई । उसी क्षण स्वस्थ होकर उन्होंने पत्र ले लिया और दामोदर से कहा – “ये दस स्वर्ण मुद्राएं उस संदेशवाहक को दे और उसे पांथशाला में रुकने के लिए भी कह । संध्या तक इस पत्र का उत्तर मिल जाएगा।"
संदेशवाहक दस स्वर्ण मुद्राएं लेकर चला गया ।
जयकीर्ति ने स्वर्ण की नलिका से पत्र निकाला और दुबारा उसे पढ़ा, फिर उसने उसे फाड़ डाला, क्योंकि अभी से नहीं कहा था कि वह पहले ही आम्रपाली से विवाह कर चुका है । वह इस तथ्य को अज्ञात ही रखना चाहता था । नंदा भी इसको न जान पाए, यही उसकी इच्छा थी ।
पढ़ना प्रारम्भ किया ।
तक उसने यह किसी
मध्याह्न में वह एकान्त में बैठ पत्र लिखने लगा । उसने लिखाप्रिये ! सबसे पहले मैं क्षमा मांग लेता हूं कि मैंने इन दिनों कोई समाचार
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