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२८० अलबेली आम्रपाली
एक दासी द्वारा उत्पन्न अपने पुत्र को आते देख मगधेश्वर की आंखों में आशा की किरण उभर आई ।
जीवक मगधेश्वर के चरणों में नत हो गया''मगधेश्वर ने उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और कुशलक्षेम पूछा।
फिर जीवक ने पिताश्री के शरीर का परीक्षण किया। रोग का निर्णय उसने मन में कर लिया था, और वह विचारमग्न होकर स्थिर-दृष्टि से पिताश्री की काया को देखने लगा।
पास में बैठी रानी त्रैलोक्यसुन्दरी ने कहा-"बेटा ! मगधेश्वर तेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे। तुझे क्या लगता है ?"
जीवक माता को नमस्कार करना भूल गया था। वह तत्काल खड़ा होकर विनयभरे स्वरों में बोला- "महादेवि ! क्षमा करें। आप यहां हैं, यह मेरे ख्याल में नहीं रहा । मेरा प्रणाम स्वीकार हो।" __रानी ने जीवक के मस्तक पर हाथ रखकर पूछा- “जीवक ! महाराज को...।"
बीच में ही जीवक बोला-"महादेवि ! आप निश्चिन्त रहें। भय का कोई कारण नहीं है । वृद्ध अवस्था में रोग तीव्र होता है । एकाध महीने में मगधेश्वर ठीक हो जाएंगे।"
ऐसे आश्वासन से रानी बहुत प्रसन्न हुई।
जीवक को एक विशेष खंड में ठहराया था। वह स्नान आदि से निवृत्त होकर भोजन करने बैठा । उसके मन से मगधेश्वर की बीमारी का विचार निकल नहीं रहा था।
भोजन से निवृत्त होकर वह विश्राम करने बैठा। इतने में ही एक दास ने आकर कहा-"कुमार श्री ! महामंत्री आए हैं।"
"कहां हैं ?" "नीचे के कक्ष में।" "चल, मैं वहीं आ रहा हूं।" कहकर जीवक नीचे के खण्ड में गया।
जीवक को देखकर महामंत्री खड़े हो गए । जीवक ने उनके चरणों में प्रणाम किया। कुशल इच्छा के बाद महामंत्री ने पूछा-"कुमार ! मगधेश्वर की कैसी हालत है ?"
"मेरा अभिप्राय बहुत दु:खद है।" जीवक ने कहा। ''मतलब !" "मगधेश्वर की यह अंतिम बीमारी है। यह उनकी अंतिम शय्या है।"
"कुमार ! आप यह क्या कहते हैं ? राजवैद्य तो कहते थे कि मगधेश्वर एकाध महीने में स्वस्थ हो जाएंगे।"