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२७८ अलबेली आम्रपाली
आम्रपाली असावधान नहीं थी । अपने समर्पण को कहीं दाग लगे, ऐसा वह कभी नहीं चाहती थी । वह समझती थी कि जो नारी भोग की ज्वालाओं में झंझापात करती है, वह नष्ट हो जाती है। नारी एक ऐसा फूल है जिसे कुम्हलाते समय नहीं लगता । नारी का गौरव उसके सतीत्व में ही है ।
यह तथ्य देवी आम्रपाली के हृदय का गुप्त धन था ।
इतना होने पर भी उसने जीवन में बहुत परिवर्तन कर दिया था।
नृत्य, रंग, आनन्द, मैरेय, हास्य, परिहास, मस्ती - इन सभी उदात्त तत्त्वों से वह भरी-पूरी थी ।
परन्तु माविका को यह कल्पना भी नहीं होती थी कि नारी के हृदय में स्थित अभिमान इस प्रकार जागृत हो उठता है ।
मात्र एक सप्ताह की व्यथा भोगकर वह आम्रपाली मदभरी अलबेली बन गई थी ।
की दृष्टि पंगु और स्मृति बहुत चंचल होती है। लोगों को यह याद भी नहीं रहा कि मगध का एक युवराज देवी के साथ रहा था। वह आम्रपाली के रूपयौवन का स्वामी बनकर वैशाली की प्रतिष्ठा को कलंकित कर गया था ।
धनंजय बहुत पहले ही राजगृही पहुंच जाता किन्तु जीवक को साकेत नगरी में एक महीने तक रुकना पड़ा। वर्षाकार भी साकेत में रचपच गया । जीवक ने अनेक प्रयोगों के पश्चात् एक अंतर्दर्शक पाषाण की खोज की थी। वह आत्रेय की कृपा से दो अन्तर्दर्शक पाषाण प्राप्त कर सका था । एक पत्थर विशाल था और दूसरा मात्र एक वितस्ती परिमाण का था । बड़ा पाषाण उसने तक्षशिला की प्रयोगशाला में रखा था और छोटा पाषाण अपने साथ रखा था ।
वे सब साकेत की एक पांथशाला में ठहरे थे । पांथशाला के रक्षक की पचास वर्ष की पत्नी के गर्भाशय में अर्बुद की भयंकर पीड़ा रहती थी। रक्षक गरीब था, फिर भी पत्नी को मौत से बचाने के लिए वह भरसक प्रयत्न कर रहा था । परन्तु वह पीड़ा शांत नहीं हो रही थी । वह रक्षक अपनी पत्नी की असह्य पीड़ा को न देख सकने के कारण विक्षिप्त सा हो गया था । जीवन साथी इस प्रकार बिछुड़ जाए तो फिर जीवित कैसे रहा जा सकता है ? यह प्रश्न उसके हृदय को
मथ रहा था ।
जिस रात्रि में पांथशाला के एक कक्ष में जीवक और वर्षाकार आराम की नींद सो रहे थे, उसी रात्रि में उस रक्षक की पत्नी की वेदनाभरी चीखें सारे वातावरण को प्रकंपित करने लगी थीं । कुमार जीवक इन चीखों से जाग उठा और उसने दूसरे कक्ष में सो रहे धनंजय को जगाकर पूछा कि ये चीखें कहां से आ रही हैं, इसकी खोज की जाए। दोनों नीचे गए और रक्षक की कोठरी में पहुंचे । रक्षक की प्रौढ़ पत्नी की चीखों से जीवक को रोग की कल्पना हो गई। उसने