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२७६ अलबेली आम्रपाली
रहा था। फाल्गुन की शोभा समस्त पूर्व भारत को अपनी गोद में लिये क्रीड़ा कर रही थी।
वैशाली का जीवन रंगीला ही था। वहां के लिच्छवी युवक मौज-मस्ती मनाने में अग्रसर थे । उससे भी फाल्गुन की मदभरी वायु की तरंगें वैशाली की मस्ती को और उग्र बना रही थीं।
सप्तभूमिप्रासाद में पुनः नृत्य, गीत और यौवन की माधुरी थिरक उठी थी।
जनपदकल्याणी के चित्त पर बिंबिसार के वियोग का अति आघात लगा था। उस आघात को हल्का करने के लिए नृत्यरानी आम्रपाली सप्ताह में दो दिन नृत्य का आयोजन कर लोगों को मत्त-विभोर बना रही थी।
बिंबिसार का प्रत्युत्तर पाकर आम्रपाली अत्यधिक व्यथित हो गई। उसका आघात और गहरा हो गया । मनुष्य का प्रेम जब घायल होता है तब वह या तो टूट जाता है या पागल बन जाता है। ___ ज्योतिषी की भविष्यवाणी सही न हो ऐसी श्रद्धा रखने वाली आम्रपाली को जब प्रियतम के प्रत्युत्तर से भी इसका साक्षात् दर्शन हुआ तब उसका मन आहत होकर छटपटाने लगा। ___एक सप्ताह तक वह अपने खंड से बाहर नहीं निकली । माध्विका ने देवी को प्रसन्न रखने के अनेक प्रयत्न किए, परन्तु आम्रपाली का चित्त व्यथित ही बना रहा। ___ आठवें दिन माविका ने कहा- "देवि ! इस प्रकार निराशा के अंधकार में रहने से आपका आरोग्य जोखिम में पड़ जाएगा।"
"माधु ! जिसकी सारी आशाएं जोखिम में पड़ चुकी हैं, उसके आरोग्य की क्या चिंता?"
"देवि ! क्षमा करें तो एक बात कहूं।"
"बोल, अब मेरे में रोष की चिनगारी भी शेष नहीं रही है।" . "युवराज श्री ने जो विवाह किया है, उसका कोई महत्त्वपूर्ण प्रयोजन होना चाहिए।"
"माधु ! युवराज एक नहीं दस विवाह करें तो भी मुझे कोई रंज नहीं होता' 'स्वस्थ और सुदृढ़ पुरुष के लिए एक से अधिक पत्नियां गौरवरूप होती हैं। परन्तु विवाह के तत्काल बाद उन्होंने मुझे समाचार नहीं भेजे, मानो मैं कुछ थी ही नहीं। यदि मुझे वे बताते तो मैं और अधिक प्रसन्न होती, न बताने से तो मेरे समर्पण का मूल्य ही नष्ट हो गया 'मुझे इसी बात का दु:ख है।"
"देवि ! समर्पण का मूल्य कभी भी नष्ट नहीं होता। आपके अन्तर में जो प्रेम है वह आपके ही समर्पण का स्वरूप है। चिंता और व्यथा से उस स्वरूप को क्यों विकृत किया जाए ?"